Alif Laam Meem Surah-2 in Hindi | सूरह बकराह हिंदी में रुकू 10-16

Alif Laam Meem Surah in Hindi: – दोस्तों जैसा कि आपने हमारी पिछली पोस्ट में सूरह बक़रह यानी की अलिफ़ लाम मीम सूरह के रुकू 1-9 तक पढ़े थे।

two muslim boy performing dua with quran in middle and alif laam meem surah in hindi ruku 10-16

इस पोस्ट में हमने सूरह बकराह यानी की अलिफ़ लाम मीम सूरह के रुकू 10-16 तक को हिंदी में तर्जुमा के साथ मौजूद कराया है।

आप अलिफ़ लाम मीम सूरह के इन रुकु को आनी से पढ़ सकते हैं।

📌 नोट: - हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम कुरान को अरबी में ही पढ़ें। जिससे हमारे अल्फाज़ ठीक-ठीक निकलें।

▶️ यह भी पढ़ें: – सूरह बकराह के रुकू 1-3 तक | रुकू 4-6 तक | रुकू 7-9 तक


Alif Laam Meem Surah (Surah Bakarah) In Hindi

सूरह बकराह हिंदी में तर्जुमा के साथ

Alif Laam Meem Surah-2 रुकू- 10

व इज् अख़ज्ना मीसा-क बनी इस्-राई-ल ला तअबुदू-न इल्लल्ला-ह , व बिल्वालिदैनि इहसानंव वज़िल्कुरबा वल्यतामा वल्मसाकीनि व कूलू लिन्नासि हुस्नंव व-अकीमुस्सला-त व आतुज्ज़का-त , सुम्-म तवल्लैतुम् इल्ला क़लीलम्-मिन्कुम् व अन्तुम् मुअ्रिजून (83)
और याद करो जब इसराईल की सन्तान से हमने वचन लिया, “अल्लाह के अतिरिक्त किसी की बन्दगी न करोगे; और माँ-बाप के साथ और नातेदारों के साथ और अनाथों और मुहताजों के साथ अच्छा व्यवहार करोगे; और यह कि लोगों से भली बात कहो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो।” तो तुम फिर गए, बस तुममें से बचे थोड़े ही और तुम उपेक्षा की नीति ही अपनाए रहे।

व इज् अख़ज्ना मीसा-ककुम्-ला तस्फिकू-न दिमा-अकुम् व ला तुख्रिजू-न अन्फु-सकुम् मिन् दियारिकुम् सुम्-म अक्ररतुम् व अन्तुम तश्हदून (84)
और याद करो जब हमने तुमसे वचन लिया, “अपने ख़ून न बहाओगे और न अपने लोगों को अपनी बस्तियों से निकालोगे।” फिर तुमने इक़रार किया और तुम स्वयं इसके गवाह हो।

सुम्-म अन्तुम् हा-उला-इ तक्तुलू-न अन्फु-सकुम् व तुख्रिजू-न फरीकम् मिन्कुम् मिन् दियारिहिम तज़ाहरू-न अलैहिम बिल्इस्मि वल्-अुद्वानि , व इंय्यअ्तूकुम् उसारा तुफादूहुम व हु-व मुहर्रमुन् अलैकुम् इख्राजुहुम , अ-फ़-तुअ्मिनू-न बिबअ्ज़िल-किताबि व तक्फुरू-न बिबअ्ज़िन् फ़मा जज़ा-उ मंय्यफ्अलु ज़ालि-क मिन्कुम् इल्ला खिज्युन् फ़िल्हयातिद्दुन्या व यौमलकियामति युरद्दू-न इला अशद्दिल-अज़ाबि , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून (85)
फिर तुम वही हो कि अपने लोगों की हत्या करते हो और अपने ही एक गरोह के लोगों को उनकी बस्तियों से निकालते हो; तुम गुनाह और ज़्यादती के साथ उनके विरुद्ध एक-दूसरे के पृष्ठपोषक बन जाते हो; और यदि वे बन्दी बनकर तुम्हारे पास आते हैं, तो उनकी रिहाई के लिए फ़िद्ये (अर्थदंड) का लेन-देन करते हो जबकि उनको उनके घरों से निकालना ही तुम पर हराम था, तो क्या तुम किताब के एक हिस्से को मानते हो और एक को नहीं मानते? फिर तुममें जो ऐसा करें उनका बदला इसके सिवा और क्या हो सकता है कि सांसारिक जीवन में अपमान हो? और क़ियामत के दिन ऐसे लोगों को कठोर से कठोर यातना की ओर फेर दिया जाएगा। अल्लाह उससे बे ख़बर नहीं है जो कुछ तुम कर रहे हो।

उला-इ-कल्लजीनश-त-र वुल्हयातद्दुन्या बिल्आख़िरति फ़ला युखफ्फफु अन्हुमुल अज़ाबु व ला हुम् युन्सरून (86)*
यही वे लोग हैं जो आख़िरत के बदले सांसारिक जीवन के ख़रीदार हुए, तो न उनकी यातना हल्की की जाएगी और न उन्हें कोई सहायता पहुँच सकेगी।


Alif Laam Meem Surah-2 रुकू- 11

व लक़द् आतैना मूसल् किता-ब व कफ्फ़ैना मिम्-बअदिही बिर्रूसुलि व आतैना अीसब्-न मर्यमल्बय्यिनाति व अय्यद्नाहु बिरूहिल्कुदुसि , अ-फकुल्लमा जाअकुम् रसूलुम बिमा ला तहवा अन्फुसुकुमुस्तक्बरतुम् फ़-फरीकन् कज्जब्तुम् व फरीकन् तक्तुलून (87)
और हमने मूसा को किताब दी थी, और उसके पश्चात आगे-पीछे निरन्तर रसूल भेजते रहे; और मरयम के बेटे ईसा को खुली-खुली निशानियाँ प्रदान कीं और पवित्र-आत्मा के द्वारा उसे शक्ति प्रदान की; तो यही तो हुआ कि जब भी कोई रसूल तुम्हारे पास वह कुछ लेकर आया जो तुम्हारे जी को पसन्द न था, तो तुम अकड़ बैठे, तो एक गरोह को तो तुमने झुठलाया और एक गरोह को क़त्ल करते रहे।

व कालू कुलूबुना गुल्फुन् , बल ल-अ नहुमुल्लाहु बिकुफ्रिहिम फ़-कलीलम्मा युअमिनून (88)
वे कहते हैं, “हमारे दिलों पर तो प्राकृतिक आवरण चढ़े हैं।” नहीं, बल्कि उनके इनकार के कारण अल्लाह ने उनपर लानत की है; अतः वे ईमान थोड़े ही लाएँगे।

व लम्मा जाअहुम् किताबुम् मिन् अिन्दिल्लाहि मुसद्दिकुल्लिमा म-अहुम् व कानू मिन् कब्लु यस्तफ़्तिहू-न अलल्लजी-न क-फरू , फ़-लम्मा जा-अहुम् मा अ-रफू क-फ-रू बिही फ़-लअ्नतुल्लाहि अलल्-काफिरीन (89)
और जब उनके पास एक किताब अल्लाह की ओर से आई है जो उसकी पुष्टि करती है जो उनके पास मौजूद है – और इससे पहले तो वे न माननेवाले लोगों पर विजय पाने के इच्छुक रहे हैं – फिर जब वह चीज़ उनके पास आ गई जिसे वे पहचान भी गए हैं, तो उसका इनकार कर बैठे; तो अल्लाह की फिटकार इनकार करने वालों पर!

बिअ-स-मश्तरौ बिही अन्फु-सहुम् अंय्यक्फुरू बिमा अन्जलल्लाहु बग्यन् अंय्युनज्जिलल्लाहु मिन् फ़ज्लिही अला मंय्यशा-उ-मिन् अिबादिही फ़-बाऊ बि-ग़-ज़-बिन् अला ग़-ज़-बिन् , व लिल्काफ़िरी-न अजाबुम् मुहीन (90)
क्या ही बुरी चीज़ है जिसके बदले उन्होंने अपनी जानों का सौदा किया, अर्थात जो कुछ अल्लाह ने उतारा है उसे सरकशी और इस अप्रियता के कारण नहीं मानते कि अल्लाह अपना फ़ज़्ल (कृपा) अपने बन्दों में से जिसपर चाहता है क्यों उतारता है, अतः वे प्रकोप पर प्रकोप के अधिकारी हो गए हैं। और ऐसे इनकार करनेवालों के लिए अपमानजनक यातना है।

व इज़ा की-ल लहुम् आमिनू बिमा अन्जलल्लाहु कालू नुअमिनु बिमा उन्ज़ि-ल अलैना व यक्फुरू-न बिमा वरा-अहू , व हुवल-हक्कु मुसद्दिकल्-लिमा म-अहुम , कुल फ़लि-म तक्तुलू-न अम्बिया-अल्लाहि मिन् कब्लु इन् कुन्तुम् मुअमिनीन (91)
जब उनसे कहा जाता है, “अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उस पर ईमान लाओ”, तो कहते हैं, “हम तो उसपर ईमान रखते हैं जो हम पर उतरा है,” और उसे मानने से इनकार करते हैं जो उसके पीछे है, जबकि वही सत्य है, उसकी पुष्टि करता है जो उनके पास है। कहो, “अच्छा तो इससे पहले अल्लाह के पैग़म्बरों की हत्या क्यों करते रहे हो, यदि तुम ईमानवाले हो?”

व लक़द् जाअकुम् मूसा बिल-बय्यिनाति सुम्मत्तखज्तुमुल-अिज्-ल मिम्-बअ्दिही व अन्तुम् ज़ालिमून (92)
तुम्हारे पास मूसा खुली-खुली निशानियाँ लेकर आया, फिर भी उसके बाद तुम ज़ालिम बनकर बछड़े को देवता बना बैठे।

व इज् अखज्ना मीसा-ककुम् व र-फ़अ्ना फ़ौ-ककुमुत्-तू-र ,खु़जू मा आतैनाकुम् बिकुव्वतिंव्-वस्मअू कालू समिअ्ना व असैना व उश्रिबू फ़ी कुलूबिहिमुल्-अिज्-ल बिकुफ्रिहिम , कुल् बिअ्समा यअ्मुरूकुम् बिही ईमानुकुम इन् कुनतुम् मुअ्मिनीन (93)
और याद करो जब हमने तुमसे वचन लिया और तूर को तुम्हारे ऊपर उठाए रखा था- “जो कुछ हमने तुम्हें दिया है उसे मज़बूती से पकड़ो और सुनो।” वे बोले, “हमने सुना, किन्तु हमने माना नहीं।” उनके अविश्वास के कारण उनके दिलों में बछड़ा बस गया था। कहो, “यदि तुम ईमान वाले हो, तो कितना बुरा वह कर्म है जिसका हुक्म तुम्हारा ईमान तुम्हें देता है।

कुल इन्-कानत् लकुमुद्-दारूल्-आख़िरतु अिन्दल्लाहि खालि-सतम् मिन् दुनिन्नासि फ-तमन्नवुल्मौ-त इन् कुन्तुम् सादिक़ीन (94)
कहो, “यदि अल्लाह के निकट आख़िरत का घर सारे इनसानों को छोड़कर केवल तुम्हारे ही लिए है, फिर तो मृत्यु की कामना करो, यदि तुम सच्चे हो।”

व लंय्य-तमन्नौहु अ-बदम् बिमा कद्द-मत् ऐदीहिम , वल्लाहु अलीमुम् बिज्जालिमीन (95)
अपने हाथों इन्होंने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण वे कदापि उसकी कामना न करेंगे; अल्लाह तो ज़ालिमों को भली-भाँति जानता है।

व ल-तजिदन्नहुम् अहरसन्नासि अला हयातिन् , व मिनल्लज़ी-न अश्रकू यवद्दु अ-हदुहुम् लौ युअम्मरू अल्-फ़ स-नतिन् , वमा हु-व बिमुज़हज़िहिही मिनल-अज़ाबि अंय्युअम्म-र , वल्लाहु बसीरूम् बिमा यअमलून (96)*
तुम उन्हें सब लोगों से बढ़कर जीवन का लोभी पाओगे, यहाँ तक कि वे इस सम्बन्ध में शिर्क करनेवालों से भी बढ़े हुए हैं। उनका तो प्रत्येक व्यक्ति यह इच्छा रखता है कि क्या ही अच्छा होता कि उसे हज़ार वर्ष की आयु मिले, जबकि यदि उसे यह आयु प्राप्त भी हो जाए तो भी वह अपने आपको यातना से नहीं बचा सकता। अल्लाह देख रहा है, जो कुछ वे कर रहे हैं।


Alif Laam Meem Surah-2 रुकू- 12

कुल मन् का-न अदुव्वल्लिजिब्री-ल फ़-इन्नहू नज्ज-लहू अला कल्बि-क बि-इज्निल्लाहि मुसद्दिकल्लिमा बै-न यदैहि व हुदंव् व बुश्रा लिल्-मुअ्मिनीन (97)
कहो, “जो कोई जिबरील का शत्रु हो, (तो वह अल्लाह का शत्रु है) क्योंकि उसने तो उसे अल्लाह ही के हुक्म से तुम्हारे दिल पर उतारा है, जो उन (भविष्यवाणियों) के सर्वथा अनुकूल है जो उससे पहले से मौजूद हैं; और ईमानवालों के लिए मार्गदर्शन और शुभ-सूचना है।

मन् का-न अदुव्वल्लिल्लाहि व मला-इ-कतिही व रूसुलिही व जिब्री-ल व मीका-ल फ़-इन्नल्ला-ह अदुव्वुल-लिल्काफ़िरीन (98)
जो कोई अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसके रसूलों और जिबरील और मीकाईल का शत्रु हो, तो ऐसे इनकार करनेवालों का अल्लाह शत्रु है।”

व लकद् अन्जल्ना इलै-क आयातिम् बय्यिनातिन् वमा यक्फुरू बिहा इल्लल्-फ़ासिकून (99)
और हमने तुम्हारी ओर खुली-खुली आयतें उतारी हैं और उनका इनकार तो बस वही लोग करते हैं जो उल्लंघनकारी हैं।

अ-व कुल्लमा आ-हदू अह्दन् न-ब-ज़हू फ़रीकुम् मिन्हुम , बल अक्सरूहुम् ला युमिनून (100)
क्या यह उनकी निश्चित नीति है कि जब भी उन्होंने कोई वचन दिया तो उनके एक गरोह ने उसे उठा फेंका? बल्कि उनमें अधिकतर ईमान ही नहीं रखते।

व लम्मा जाअहुम् रसूलुम् मिन् अिन्दिल्लाहि मुसद्दिकुल-लिमा म-अहुम् न-ब-ज़ फरीकुम मिनल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब किताबल्लाहि वरा-अ जुहूरिहिम् क-अन्नहुम् ला यअ्लमून (101)
और जब उनके पास अल्लाह की ओर से एक रसूल आया, जिससे उस (भविष्यवाणी) की पुष्टि हो रही है जो उनके पास थी, तो उनके एक गरोह ने, जिन्हें किताब मिली थी, अल्लाह की किताब को अपने पीठ पीछे डाल दिया, मानो वे कुछ जानते ही नहीं।

वत्त-बअू मा तत्लुश्शयातीनु अ़ला मुल्कि सुलैमा-न वमा क-फ़-र सुलैमानु व लाकिन्नश्शयाती-न क-फरू युअल्-लि-मूनन्-नासस्-सिह-र , वमा उन्ज़ि-ल अलल् म-ल-कैनि बिबाबि-ल हारू-त व मारू-त , वमा युअल्लिमानि मिन् अ-हदिन् हत्ता यकूला इन्नमा नह्नू फ़ित्नतुन् फ़ला तक्फुर , फ़-य-तअल्लमू-न मिन्हुमा मा युफ़र्रिकू-न बिही बैनल-मरइ व जौजिही , वमा हुम् बिज़ार्री-न बिही मिन् अ-हदिन इल्ला बि-इज्निल्लाहि , व य-तअल्लमू-न मा यजुर्रूहुम् वला यन्फ़अुहुम , व लकद् अलिमू ल-मनिश्तराहु मा लहू फ़िल्आख़िरति मिन् खलाकिन् , व लबिअ्-स मा शरौ बिही अन्फु-सहुम , लौ कानू यअलमून (102)
और जो वे उस चीज़ के पीछे पड़ गए जिसे शैतान सुलैमान की बादशाही पर थोपकर पढ़ते थे – हालाँकि सुलैमान ने कोई कुफ़्र नहीं किया था, बल्कि कुफ़्र तो शैतानों ने किया था; वे लोगों को जादू सिखाते थे – और न ही (ऐसा है जैसा कि वे कहते थे कि) बाबिल में दो फ़रिश्तों, हारूत और मारूत, पर जादू उतारा गया था। और वे (दो चालाक व्यक्ति) किसी को भी सिखाते न थे जब तक कि कह न देते, “हम तो बस एक परीक्षा हैं; तो तुम कुफ़्र में न पड़ना।” तो लोग उन दोनों से वह कुछ सीखते हैं, जिसके द्वारा पति और पत्नी में अलगाव पैदा कर दें – यद्यपि वे उससे किसी को भी हानि नहीं पहुँचा सकते थे। हाँ, यह और बात है कि अल्लाह के हुक्म से किसी को हानि पहुँचनेवाली ही हो – और वह कुछ सीखते हैं जो उन्हें हानि ही पहुँचाए और उन्हें कोई लाभ न पहुँचाए। और उन्हें भली-भाँति मालूम है कि जो उसका ग्राहक बना, उसका आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं। कितनी बुरी चीज़ के बदले उन्होंने अपने प्राणों का सौदा किया, यदि वे जानते (तो ठीक मार्ग अपनाते)।

व लौ अन्नहुम् आमनू वत्तकौ ल-मसू-बतुम् मिन् अिन्दिल्लाहि खैरून् , लौ कानू यअ्लमून (103)*
और यदि वे ईमान लाते और डर रखते, तो अल्लाह के यहाँ से मिलनेवाला बदला कहीं अच्छा था, यदि वे जानते (तो इसे समझ सकते) ।


Alif Laam Meem Surah-2 रुकू- 13

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तकूलू राअिना व कूलुन्जुर्ना वस्मअू , व लिल्काफ़िरी-न अज़ाबुन अलीम (104)
ऐ ईमान लानेवालो! ‘राइना’ न कहा करो, बल्कि ‘उनज़ुरना’ कहो और सुना करो। और इनकार करनेवालों के लिए दुखद यातना है।

मा यवद्दुल्लज़ी-न क-फरू मिन अहिलल्-किताबि व ललमुश्रिकी-न अंय्यु नज्ज़-ल अलैकुम् मिन् खैरिम्-मिर्रब्बिकुम , वल्लाहु यख़्तस्सु बिरहमतिहि मंय्यशा-उ , वल्लाहु जुलफ़ज्लिल-अज़ीम (105)
इनकार करनेवाले नहीं चाहते, न किताबवाले और न मुशरिक (बहुदेववादी) कि तुम्हारे रब की ओर से तुमपर कोई भलाई उतरे, हालाँकि अल्लाह जिसे चाहे अपनी दयालुता के लिए ख़ास कर ले; अल्लाह बड़ा अनुग्रह करनेवाला है।

मा नन्सखू मिन् आयतिन् औ नुन्सिहा नअ्ति बिखैरिम् मिन्हा औ मिस्लिहा , अलम् तलम् अन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर (106)
हम जिस आयत (और निशान) को भी मिटा दें या उसे भुला देते हैं, तो उससे बेहतर लाते हैं या उस जैसी दूसरी ही। क्या तुम जानते नहीं हो कि अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है?

अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह लहू मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि , वमा लकुम् मिन् दुनिल्लाहि मिंव्वलिय्यिंव वला नसीर (107)
क्या तुम नहीं जानते कि आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है और अल्लाह से हटकर न तुम्हारा कोई मित्र है और न सहायक?

अम् तुरीदू-न अन् तस्अलू रसूलकुम् कमा सुइ-ल मूसा मिन् कब्लु , वमंय्-य-तबद्दलिल-कुफ्-र बिल्ईमानि फ़-कद् ज़ल-ल सवाअस्सबील (108)
(ऐ ईमानवालो! तुम अपने रसूल के आदर का ध्यान रखो) या तुम चाहते हो कि अपने रसूल से उसी प्रकार से प्रश्न और बात करो, जिस प्रकार इससे पहले मूसा से बात की गई है? हालाँकि जिस व्यक्ति ने ईमान के बदले इनकार की नीति अपनाई, तो वह सीधे रास्ते से भटक गया

वद्-द कसीरूम मिन् अहलिल-किताबि लौ यरूद्दूनकुम् मिम्-बअदि ईमानिकुम् कुफ्फारन् ह-सदम् मिन् अिन्दि अन्फुसिहिम् मिम्-बअ्दि मा तबय्य-न लहुमुल-हक्कु फ़अफू वस्फ़हू हत्ता यअ्तियल्लाहु बिअमरिही , इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर • (109)
बहुत-से किताबवाले अपने भीतर की ईर्ष्या से चाहते हैं कि किसी प्रकार वे तुम्हारे ईमान लाने के बाद फेरकर तुम्हे इनकार कर देनेवाला बना दें, यद्यपि सत्य उनपर प्रकट हो चुका है, तो तुम दरगुज़र (क्षमा) से काम लो और जाने दो यहाँ तक कि अल्लाह अपना फ़ैसला लागू कर दे। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।

व अक़ीमुस्सला-त व आतुज्जका-त , वमा तुकद्दिमू लिअन्फुसिकुम मिन् खैरिन् तजिदूहु अिन्दल्लाहि , इन्नल्ला-ह बिमा तअ्मलू-न बसीर (110)
और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो और तुम स्वयं अपने लिए जो भलाई भी पेश करोगे, उसे अल्लाह के यहाँ मौजूद पाओगे। निस्संदेह जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसे देख रहा है।

व कालू लंय्यदखुलल जन्न-त इल्ला मन् का-न हूदन् औ नसारा , तिल-क अमानिय्युहुम , कुल हातू बुरहानकुम् इन् कुन्तुम् सादिक़ीन (111)
और उनका कहना है, “कोई व्यक्ति जन्नत में प्रवेश नहीं कर सकता सिवाय उसके जो यहूदी है या ईसाई है।” ये उनकी अपनी निराधार कामनाएँ हैं। कहो, “यदि तुम सच्चे हो तो अपने प्रमाण पेश करो।”

बला , मन् अस्ल-म वज्हहू लिल्लाहि व हु-व मुह्सिनुन् फ़-लहू अज्रूहू अिन्-द रब्बिही वला ख़ौफुन अलैहिम व ला हुम् यह्ज़नून (112) *
क्यों नहीं, जिसने भी अपने-आपको अल्लाह के प्रति समर्पित कर दिया और उसका कर्म भी अच्छे से अच्छा हो तो उसका प्रतिदान उसके रब के पास है और ऐसे लोगों के लिए न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे।


Alif Laam Meem Surah-2 रुकू- 14

व कालतिल यहूदु लैसतिन्नसारा अला शैइवं व कालतिन्नसारा लैसतिल यहूदु अला शैइंव व हुम् यतलूनल्किता-ब , कज़ालि-क कालल्लज़ी-न ला यअलमू-न मिस्-ल कौलिहिम् फ़ल्लाहु यह्कुमु बैनहुम् यौमल-कियामति फ़ीमा कानू फ़ीहि यख़्तलिफून (113)
यहूदियों ने कहा, “ईसाइयों की कोई बुनियाद नहीं।” और ईसाइयों ने कहा, “यहूदियों की कोई बुनियाद नहीं।” हालाँकि वे किताब का पाठ करते हैं। इसी तरह की बात उन्होंने भी कही है जो ज्ञान से वंचित हैं। तो अल्लाह क़ियामत के दिन उनके बीच उस चीज़ के विषय में निर्णय कर देगा, जिसके विषय में वे विभेद कर रहे हैं।

व मन् अज्लमु मिम्मम्-म-न-अ मसाजिदल्लाहि अंय्युज्क-र फ़ीहस्मुहू व-सआ फी खराबिहा , उलाइ-क मा-का-न लहुम् अय्यद्खुलूहा इल्ला ख़ा-इफ़ी-न , लहुम् फ़िद्दुन्या खिज्युंव व-लहुम् फ़िल् आखिरति अ़ज़ाबुन अज़ीम (114)
और उससे बढ़कर अत्याचारी और कौन होगा जिसने अल्लाह की मस्जिदों को उसके नाम के स्मरण से वंचित रखा और उन्हें उजाड़ने पर उतारू रहा? ऐसे लोगों को तो बस डरते हुए ही उसमें प्रवेश करना चाहिए था। उनके लिए संसार में रुसवाई (अपमान) है और उनके लिए आख़िरत में बड़ी यातना नियत है।

व लिल्लाहिल् मश्रिकु वल्-मग्रिबु फ़-औनमा तुवल्लू फ़-सम्-म वज्हुल्लाहि , इन्नल्ला-ह वासिअन् अलीम (115)
पूरब और पश्चिम अल्लाह ही के हैं, अतः जिस ओर भी तुम रुख़ करो उसी ओर अल्लाह का रुख़ है। निस्संदेह अल्लाह बड़ी समाईवाला (सर्वव्यापी) सर्वज्ञ है।

व कालुत्-तख़ज़ल्लाहु व लदन सुब्हानहू , बल-लहू मा फिस्समावाति वल्अर्जि , कुल्लुल्लहू कानितून (116)
कहते हैं, अल्लाह औलाद रखता है – महिमावाला है वह! (पूरब और पश्चिम ही नहीं, बल्कि) आकाशों और धरती में जो कुछ भी है, उसी का है। सभी उसके आज्ञाकारी हैं।

बदीअुस्समावाति वलअर्जि , व इज़ा कज़ा अम्रन् फ़-इन्नमा यकूलु लहू कुन् फ़-यकून (117)
वह आकाशों और धरती का प्रथमतः पैदा करनेवाला है। वह तो जब किसी काम का निर्णय करता है तो उसके लिए बस कह देता है कि “हो जा” और वह हो जाता है।

व कालल्लज़ी-न ला यअलमू-न लौ ला युकल्लिमुनल्लाहु औ तअतीना आयतुन् , कज़ालि-क कालल्लज़ी-न मिन् कब्लिहिम् मिस्-ल कौलिहिम् , तशा-बहत् कुलू बुहुम , कद् बय्यन्नल – आयाति लिकौमिंय्यूकिनून (118)
जिन्हें ज्ञान नहीं वे कहते हैं, “अल्लाह हमसे बात क्यों नहीं करता? या कोई निशानी हमारे पास आ जाए।” इसी प्रकार इनसे पहले के लोग भी कह चुके हैं। इन सबके दिल एक जैसे हैं। हम खोल-खोलकर निशानियाँ उन लोगों के लिए बयान कर चुके हैं जो विश्वास करें।

इन्ना अरसल्ना-क बिल्हक्कि बशीरंव व-नज़ीरंव वला तुसूअलु अन् अस्हाबिल जहीम (119)
निश्चित रूप से हमने तुम्हें हक़ के साथ शुभ-सूचना देनेवाला और डरानेवाला बनाकर भेजा। भड़कती आग में पड़नेवालों के विषय में तुमसे कुछ न पूछा जाएगा।

व लन् तर्जा अन्कल्-यहूदु व लन्-नसारा हत्ता तत्तबि-अ मिल्ल-तहुम , कुल इन्-न हुदल्लाहि हुवल्-हुदा , व-ल-इनित्त-बअ-त अहवा-अहुम् बअ्दल्लज़ी जाअ-क मिनल-अिल्मि मा ल-क मिनल्लाहि मिव्वलिय्यिंव वला नसीर (120)
न यहूदी तुमसे कभी राज़ी होनेवाले हैं और न ईसाई, जब तक कि तुम उनके पंथ पर न चलने लग जाओ। कह दो, “अल्लाह का मार्गदर्शन ही वास्तविक मार्गदर्शन है।” और यदि उस ज्ञान के पश्चात जो तुम्हारे पास आ चुका है, तुमने उनकी इच्छाओं का अनुसरण किया तो अल्लाह से बचानेवाला न तो तुम्हारा कोई मित्र होगा और न सहायक।

अल्लज़ी-न आतैनाहुमुल्-किता-ब यत्लूनहू हक्-क तिलावतिही , उलाइ-क युअ्मिनू-न बिही , व मंय्यक्फुर बिही फ़-उलाइ-क हुमुल ख़ासिरून (121)*
जिन लोगों को हमने किताब दी है उनमें वे लोग जो उसे उस तरह पढ़ते हैं जैसा कि उसके पढ़ने का हक़ है, वही उसपर ईमान ला रहे हैं, और जो उसका इनकार करेंगे, वही घाटे में रहनेवाले हैं।


Alif Laam Meem Surah-2 रुकू- 15

या बनी इस्-राई लज्कुरू निअ्मतियल्लती अन्अम्तु अलैकुम् व अन्नी फज्ज़ल्तुकुम् अलल आलमीन (122)
ऐ इसराईल की सन्तान! मेरी उस कृपा को याद करो जो मैंने तुमपर की थी और यह कि मैंने तुम्हें संसारवालों पर श्रेष्ठता प्रदान की।

वत्तकू यौमल्ला-तज्ज़ी नफ़्सुन् अन्नफसिन् शैअंव वला युक्बलु मिन्हा अदलुंव वला तन्फ़अुहा शफाअतुंव वला हुम् युन्सरून (123)
और उस दिन से डरो, जब कोई न किसी के काम आएगा, न किसी की ओर से अर्थदंड स्वीकार किया जाएगा और न कोई सिफ़ारिश ही उसे लाभ पहुँचा सकेगी और न उनको कोई सहायता ही पहुँच सकेगी।

व इज़िब्तला इब्राही-म रब्बुहू बि-कलिमातिन् फ़-अ-तम्म- हुन्-न , का-ल इन्नी जाअिलु-क लिन्नासि इमामन् , का-ल व मिन् जुर्रिय्यती , का-ल ला यनालु अह्दिज्-ज़ालिमीन (124)
और याद करो जब इबराहीम की परीक्षा उसके रब ने कुछ बातों में ली तो उसने उनको पूरा कर दिखाया। उसने (रब ने) कहा, “मैं तुझे सारे इनसानों का पेशवा बनानेवाला हूँ।” उसने निवेदन किया, “और मेरी सन्तान में से भी।” उसने (रब ने) कहा, “ज़ालिम मेरे इस वादे के अन्तर्गत नहीं आ सकते।”

व इज् जअल्-नल्-बै-त मसा-बतल् लिन्नासि व अमनन् , वत्तखिजू मिम् मक़ामि इब्राही-म मुसल्लन् , व अहिद्ना इला इब्राही-म व इस्माली-ल अन् तहि्हरा बैति-य लित्ता-इफ़ी-न वल् आकिफ़ी-न वर्रूक्क-अिस्सुजूद (125)
और याद करो जब हमने इस घर (काबा) को लोगों को लिए केन्द्र और शान्तिस्थल बनाया – और, “इबराहीम के स्थल में से किसी जगह को नमाज़ की जगह बना लो।” – और इबराहीम और इसमाईल को ज़िम्मेदार बनाया कि “तुम मेरे इस घर को तवाफ़ करनेवालों और एतिकाफ़ करनेवालों के लिए और रुकू और सजदा करनेवालों के लिए पाक-साफ़ रखो।

व इज् का-ल इब्राहीमु रब्बिअ्ल हाज़ा ब-लदन् आमिनंव्-वरज़ुक् अहलहू मिनस्-स-मराति मन् आम-न मिन्हुम् बिल्लाहि वलयौमिल आखिरि , का-ल वमन् क-फ-र फ़-उमत्तिअु़हू कलीलन सुम्-म अज्तरर्रूहू इला अज़ाबिन्नारि , व बिअसल्-मसीर (126)
और याद करो जब इबराहीम ने कहा, “ऐ मेरे रब! इसे शान्तिमय भू-भाग बना दे और इसके उन निवासियों को फलों की रोज़ी दे जो उनमें से अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाएँ।” (रब ने) कहा, “और जो इनकार करेगा थोड़ा फ़ायदा तो उसे भी दूँगा, फिर उसे घसीटकर आग की यातना की ओर पहुँचा दूँगा और वह बहुत-ही बुरा ठिकाना है!”

व इज् यरफ़अु़ इब्राहीमुल् कवाअि-द् मिनल बैति व इस्माअीलु , रब्बना तकब्बल मिन्ना , इन्न-क अन्तस्समीअुल-अलीम (127)
और याद करो जब इबराहीम और इसमाईल इस घर की बुनियादें उठा रहे थे (तो उन्होंने प्रार्थना की), “ऐ हमारे रब! हमारी ओर से इसे स्वीकार कर ले, निस्संदेह तू सुनता-जानता है।

रब्बना वज्अल्ना मुस्लिमैनि ल-क व मिन् जुर्रिय्यतिना उम्मतम् मुस्लि-मतल ल-क व अरिना मनासि-क-ना व तुबू अलैना इन्न-क अन्तत्तव्वाबुर्-रहीम (128)
ऐ हमारे रब! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना और हमारी संतान में से अपना एक आज्ञाकारी समुदाय बना और हमें हमारे इबादत के तरीक़े बता और हमारी तौबा क़बूल कर। निस्संदेह तू तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है।

रब्बना वब्असू फ़ीहिम् रसूलम् मिन्हुम यत्लू अलैहिम् आयाति-क व युअल्लिमुहुमुल-किता-ब वल-हिक्म-त व-युज़क्कीहिम , इन्न-क अन्तल अज़ीजुल-हकीम (129)*
ऐ हमारे रब! उनमें उन्हीं में से एक ऐसा रसूल उठा जो उन्हें तेरी आयतें सुनाए और उनको किताब और तत्वदर्शिता की शिक्षा दे और उन (की आत्मा) को विकसित करे। निस्संदेह तू प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।”


Alif Laam Meem Surah-2 रुकू- 16

व मंय्यरगबु अम्-मिल्लति इब्राही-म इल्ला मन् सफ़ि-ह नफ्सहू , व-ल-कदिस्तफैनाहु फिद्दुन्या व इन्नहू फ़िल-आखिरति लमिनस्सालिहीन (130)
कौन है जो इबराहीम के पंथ से मुँह मोड़े सिवाय उसके जिसने स्वयं को पतित कर लिया? और उसे तो हमने दुनिया में चुन लिया था और निस्संदेह आख़िरत में उसकी गणना योग्य लोगों में होगी।

इज़ का-ल लहू रब्बुहू असलिम् का-ल अस्लम्तु लि-रब्बिल् आलमीन (131)
क्योंकि जब उससे उसके रब ने कहा, “मुस्लिम (आज्ञाकारी) हो जा।” उसने कहा, “मैं सारे संसार के रब का मुस्लिम हो गया।”

व वस्सा बिहा इब्राहीमु बनीहि व यअकूबु , या बनिय्-य इन्नल्लाहस्तफ़ा लकुमुद्दी-न फ़ला तमूतुन्-न इल्ला व अन्तुम् मुस्लिमून (132)
और इसी की वसीयत इबराहीम ने अपने बेटों को की और याक़ूब ने भी (अपनी सन्तानों को की) कि, “ऐ मेरे बेटो! अल्लाह ने तुम्हारे लिए यही दीन (धर्म) चुना है, तो इस्लाम (ईश-आज्ञापालन) के अतिरिक्त किसी और दशा में तुम्हारी मृत्यु न हो।”

अम् कुन्तुम् शु-हदा-अ इज् ह-ज़-र यअकूबल-मौतु इज़् का-ल लि-बनीहि मा तअबुदू-न मिम्-बअ्दी , कालू नअ्बुदु इलाह-क व इला-ह आबाइ-क इब्राही-म व इस्माअी़-ल व इसहा-क इलाहंव्-वाहिदंव-व नह्नु लहू मुस्लिमून (133)
(क्या तुम इबराहीम के वसीयत करते समय मौजूद थे?) या तुम मौजूद थे जब याक़ूब की मृत्यु का समय आया? जब उसने अपने बेटों से कहा, “तुम मेरे पश्चात किसकी इबादत करोगे?” उन्होंने कहा, “हम आपके इष्ट-पूज्य और आपके पूर्वज इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ के इष्ट-पूज्य की बन्दगी करेंगे – जो अकेला इष्ट-पूज्य है, और हम उसी के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं।”

तिल-क उम्मतुन् कद् ख़लत् लहा मा क-सबत् व लकुम् मा क-सब्तुम् व ला तुस्अ्लू-न अम्मा कानू यअ्मलून (134)
वह एक गरोह था जो गुज़र चुका, जो कुछ उसने कमाया वह उसका है, और जो कुछ तुमने कमाया वह तुम्हारा है। और जो कुछ वे करते रहे उसके विषय में तुमसे कोई पूछताछ न की जाएगी।

व कालू कूनू हूदन् औ नसारा तह्तदू , कुल बल मिल्ल-त इब्राही-म हनीफ़न् , व मा का-न मिनल् – मुश्रिकीन (135)
वे कहते हैं, “यहूदी या ईसाई हो जाओ तो मार्ग पा लोगे।” कहो, “नहीं, बल्कि इबराहीम का पंथ अपनाओ जो एक (अल्लाह) का हो गया था, और वह बहुदेववादियों में से न था।”

कूलू आमन्ना बिल्लाहि वमा उन्जि-ल इलैना वमा उन्ज़ि-ल इला इब्राही-म व इस्माअी-ल व इस्हा-क व यअकू-ब वल-अस्बाति वमा ऊति-य मूसा व अीसा वमा ऊतियन्नबिय्यू-न मिर्रब्बिहिम् ला नुफ़र्रिकु बै-न अ-हदिम्-मिन्हुम् व नह्नु लहू मुस्लिमून (136)
कहो, “हम ईमान लाए अल्लाह पर और उस चीज़ पर जो हमारी ओर उतरी और जो इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ और याक़ूब और उनकी संतान की ओर उतरी, और जो मूसा और ईसा को मिली, और जो सभी नबियों को उनके रब की ओर से प्रदान की गई। हम उनमें से किसी (नबी) के बीच अन्तर नहीं करते और हम केवल उसी के आज्ञाकारी हैं।”

फ़-इन् आमनू बिमिस्लि मा आमन्तुम् बिही फ़-कदिहतदौ व इन तकल्लौ फ-इन्नमा हुम् फ़ी शिकाकिन् फ़-स-यक्फी-कहुमुल्लाहु व-हुवस्समीअुल अलीम (137)
फिर यदि वे उसी तरह ईमान लाएँ जिस तरह तुम ईमान लाए हो, तो उन्होंने मार्ग पा लिया। और यदि वे मुँह मोड़ें, तो फिर वही विरोध में पड़े हुए हैं। अतः तुम्हारी जगह स्वयं अल्लाह उनसे निबटने के लिए काफ़ी है; वह सब कुछ सुनता, जानता है।

सिब-गतल्लाहि व मन् अहसनु मिनल्लाहि सिब-गतंव व नह्नु लहू आबिदून (138)
(कहो) “अल्लाह का रंग ग्रहण करो, उसके रंग से अच्छा और किसका रंग हो सकता है? और हम तो उसी की बन्दगी करते हैं।”(

कुल अतुहाज्जू-नना फ़िल्लाहि व हुव रब्बुना व रब्बुकुम् व लना अअ्मालुना व लकुम् अअ्मालुकुम व नह्नु लहू मुख़्लिसून (139)
कहो, “क्या तुम अल्लाह के विषय में हमसे झगड़ते हो, हालाँकि वही हमारा रब भी है, और तुम्हारा रब भी? और हमारे लिए हमारे कर्म हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। और हम तो बस निरे उसी के हैं।

अम् तकूलू-न इन्-न इब्राही-म व इस्माअी-ल व इस्हा-क व यअ्कू-ब वल्-अस्बा-त कानू हूदन औ नसारा , कुल अ-अन्तुम् अअ्लमु अमिल्लाहु व मन् अ़ज्लमु मिम्मन् क-त-म शहा-दतन् अिन्दहू मिनल्लाहि , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून (140)
या तुम कहते हो कि इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ और याक़ूब और उनकी संतान सब के सब यहूदी या ईसाई थे?” कहो, “तुम अधिक जानते हो या अल्लाह? और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा, जिसके पास अल्लाह की ओर से आई हुई कोई गवाही हो, और वह उसे छिपाए? और जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह उससे बेख़बर नहीं है।”(

तिल-क उम्मतुन् कद् ख़लत् लहा मा क-सबत् व लकुम् मा क-सब्तुम् वला तुस्अलू-न अम्मा कानू यअ्मलून (141)*
वह एक गरोह था जो गुज़र चुका, जो कुछ उसने कमाया वह उसके लिए है और जो कुछ तुमने कमाया वह तुम्हारे लिए है। और तुमसे उसके विषय में न पूछा जाएगा, जो कुछ वे करते रहे हैं।

आगे के रुकू को पढ़ने के लिए हमारी दूसरी पोस्ट को पढ़ें…. अलिफ़ लाम मीम रुकू 17-30

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