Surah Fatiha in Hindi Pdf | सूरह फातिहा हिंदी में लिखी हुई तर्जुमा संग

Last updated on दिसम्बर 17th, 2022 at 05:10 अपराह्न

सूरह फातिहा, मक्की है, इसमें 7 आयते है। इसका सूरह का नाम अल-फातिहा इसके विषय के मुताबिक है।

सूरह फातिहा का हिंदी मतलब (surah fatiha meaning in hindi) होता है:-

जिससे किसी विषय या पुस्तक या किसी वस्तु का उद्घाटन यानी शुरुआत हो।

दूसरे शब्दों में यूं समझें कि यह सूरा अल-फ़ातिहा प्रतिदिन दुआ के शरुआत में बोली जाने वाली सूरा है।

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मेरे प्यारे दोस्तों, हम इस पोस्ट में सूरह फातिहा हिंदी में (surah fatiha in hindi) में पढेंगे।

और साथ ही साथ हम सूरह फातिहा का हिंदी में तर्जुमा ( surah fatiha ka tarjuma) और सूरह फातिहा के फायदे ( fatiha surah benefits) और फ़ज़ीलत को भी पढेंगे।

हमने आपकी सहूलियत के लिए इस पोस्ट में सूरह फातिहा की पीडीऍफ़ भी मौजूद करायी है।

सूरह फातिहा हिंदी में सुनें

सूरह का नामसूरह अल फातिहा
कहाँ नाज़िल हुईमक्का
आयतें7
पारा नंबर1
अन्य नामउम्म अल-किताब, उम्म अल-कुरान, कुन्जी, सूरा अल-हम्द, अल-शिफा, अल-रुक़ाह

सूरह फातिहा हिंदी में | Surah Fatiha in Hindi

अऊज़ुबिल्लाही मिनस शैतानिर रजीम
बिस्मिल्लाह हिर रहमान नीर रहीम

अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन
अर्रहमानिर्रहीम
मालिकि यौमिद्दीन
इय्या-क न बुदु व इय्या-क नस्तीइन,
इहदिनस्सिरातल्-मुस्तकीम
सिरातल्लज़ी-न अन्अम्-त अलैहिम
गैरिल्-मग़जूबि अलैहिम् व लज्जॉल्लीन

सूरह फातिहा का तर्जुमा | Surah Fatiha Ka Trajuma

अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करने वाला है।

प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है जो सारे जहान का रब है।

बड़ा ही मेहरबान और दया करने वाला है।

बदला दिए जाने के दिन का मालिक है।
हम तेरी ही बंदगी’ करते हैं और तुझी से मदद मांगते हैं।

हमें सीधा मार्ग दिखा।

उन लोगों का मार्ग जो तेरे कृपापात्र हुए।

जो प्रकोप के भागी नहीं हुए, जो भटके हुए नहीं हैं।

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सूरह फातिहा हिंदी इमेज | Surah Fatiha in Hindi Image

दोस्तों यहाँ हमने आपके लिखे सूरह फातिहा हिंदी में लिखी हुई इमेज मौजूद करायी है।

आप इस फोटो को अपने फ़ोन या लैपटॉप में सेव कर सकते है।

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Surah Fatiha Hindi Pdf Download

मेरे प्यारे दीनी भाइयों और बहनों जैसा की आपने ऊपर सूरह फातिहा को हिंदी में तर्जुमा के साथ पढ़ा ही होगा।

साथ ही साथ आपने Surah Fatiha Ka Tarjuma Hindi Mein भी पढ़ा होगा।

यहाँ हमने Surah Fatiha Hindi Pdf मौजूद करायी है।

आप आसानी के साथ सूरह फातिहा की पीडीऍफ़ को डाउनलोड कर सकते है।

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Surah Fatiha Mp3 or Audio File Download

सूरह फातिहा को पढ़ने के इनाम और फायदे हमारी सोच से परे हैं, लेकिन इसे सुनने से आपका तनाव दूर हो सकता है और आपकी रूह को सुकून मिल सकता है।

यहां से आप Surah Fatiha Mp3 डाउनलोड सकते है।

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क्या है सूरह फातिहा?

यह सूरह मक्की है, इसमें सात आयते है।

यह सूरह शरुआती दौर मे मक्का मे उतरी है, जो कुरान की भूमिका के समान है।

इसी कारण इस का नाम ((सुरह फातिहा)) अर्थात: “शुरू की सूरह “है।

इस का मोज्ज्जा यानी चमत्कार यह है की इस की सात आयतों में पूरे कुरान का निचोड़ रख दिया गया है।

और इस मे कुरान के बुनयादी संदेश: तौहीद, रीसालत तथा आखरत ( जन्नत और जहन्नम ) के विषय को संक्षेप मे समो दिया गया है।

इस मे अल्लाह की रहमत, उस के पालक तथा एक इबादत के लायक होने के गुणों को बयान किया गया है।

इस सुरह के तर्जुमे पर विचार करने से बहुत से तथ्य उजागर हो जाते है और ऐसा प्रतीत होता है की सागर को गागर मे बंद कर दिया गया है।

इस सुरह में अल्लाह के गुण–गान तथा उस से दुआ करने की शिक्षा दी गई है की – अल्लाह की सराहना और प्रशंसा किन शब्दो से की जाये।

इसी प्रकार इस मे बंदो को न केवल इबादत की शिक्षा दी गई है बल्कि उन्हें जीवन यापन के गुण भी बताये गये है।

अल्लाह ने इस से पहले बहुत से समुदायो को सीधा रास्ता दिखाया किन्तु उन्होंने गलत रास्ते को अपना लिया, और इस मे उसी कुपथ के अंधेरे से निकलने की दुआ है।

बंदा अल्लाह से मार्ग–दर्शन के लिये दुआ (प्राथना) करता है तो अल्लाह उस के आगे पूरा कुरान रख देता है की यह सीधी राह है जिसे तू खोज रहा है। अब मेरा नाम लेकर इस राह पर चल पड़।

सूरह फातिहा की फजीलत ( Surah Fatiha Ki Fazilat )

  • सूरह फातिहा की नमाज़ में बहुत बड़ी फ़ज़ीलत है, अगर सूरह फातिहा नही पढ़ी जाए तो नमाज़ अधूरी रहती है।
  • मजमाउल बयान की टिप्पणी में यह बताया गया है कि प्यारे पैगंबर (सल्ललाहो अलैह बसल्लम) ने इरशाद फरमाया कि;

जो कोई भी इस सूरह फातिहा की तिलाबत करता है, उसे पूरे कुरान के दो तिहाई (2/3) पढ़ने के बराबर का सवाब मिलेगा,

और उसे दुनिया के तमाम मोमिन मर्दों और औरतों को जो सदका देने पर जो सवाब मिलता है उसके बराबर, इस सूरह फातिहा की तिलावत करने पर सवाब मिलेगा।

  • प्यारे पैगंबर (सल्ललाहो अलैह बसल्लम) ने एक बार जाबिर बिन अब्दुल्ला अंसारी से पूछा, “क्या मुझे आपको एक सूरह सिखाना चाहिए जिसकी पूरे कुरान में कोई अन्य बराबरी नहीं है?”

जाबिर ने जबाब दिया, “हाँ, और अल्लाह के प्यारे नबी (सल्ललाहो अलैह बसल्लम), मेरे बालिदैन आप पर फिदया दे सकते हैं।”

तो अल्लाह के प्यारे नबी (सल्ललाहो अलैह बसल्लम) ने उन्हें सूरह अल-फातिहा सिखाया।

फिर अल्लाह के प्यारे नबी (सल्ललाहो अलैह बसल्लम) ने पूछा, “जाबिर, क्या मैं आपको इस सूरह के बारे में कुछ बताऊं?”

जाबिर ने जबाब दिया, “हाँ, और अल्लाह के प्यारे नबी (सल्ललाहो अलैह बसल्लम), मेरे बालिदैन आप पर फिदया दे सकते हैं।”

अल्लाह के प्यारे नबी (सल्ललाहो अलैह बसल्लम) ने कहा, “यह (सूरह अल-फातिहा) मौत को छोड़कर हर बीमारी का इलाज है।”

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  • हज़रत सैयदना अबू हुरैरा रदी अल्लाह ताला अन्हु फरमाते हैं कि:

“मैं ने सैयदा-अल-मबलगैन, रहमत-उल-अलमीन सलाल अल्लाह तलैही व सलाम को फरमाते होए सुना की

“अल्लाह रब उल इज़्ज़त फरमाता है के मैं ने सूरह फातिहा को अपने और अपने बंदो के दरमियान दो हिस्सो मैं तकसीम कर दिया है और मेरे बंदो के लिए वही है जो वो मांगे”…….

  • एक रिवायत में है की “सूरह फातिहा में आधी सूरह मेरे लिए है और आधी मेरे बंदो के लिए”

जब बंदा “अल्हम्दुलिल्लाह ही रब्बिल आलमीन कहता है तो अल्लाह रब-उल इज़्ज़त फरमाता है के

“मेरे बन्दे ने मेरी सना बयान की”।

जब बंदा “अर रहमान निर रहीम” कहता है तो अल्लाह रब उल इज़्ज़त फरमाता है के “मेरे बं ने मेरी बुज़ुर्गि ब्यान की”

जब बंदा “इयाका ना’बुदु वा’याका नस्तीन “कहता है तो अल्लाह रब उल इज़्ज़त फरमाता है” ये मेरे और मेरे बंदे के दरमियान है और मेरे बंदे के लिए वही है जो वो मुझसे मांगे”।

सूरतुल फ़ातिहा तफ़्सीर हिंदी में | Fatiha Surah Tafseer in Hindi

इस सूरह फ़ातिहा हिंदी में लिखी हुई अल्लाह तआला की तारीफ़, उसकी बड़ाई, उसकी रहमत, उसका मालिक होना, उससे इबादत, अच्छाई, हिदायत,

हर तरह की मदद तलब करना, दुआ मांगने का तरीक़ा, अच्छे लोगों की तरह रहने और बुरे लोगों से दूर रहने, दुनिया की ज़िन्दगी का ख़ातिमा, अच्छाई और बुराई के हिसाब के दिन का साफ़ साफ़ बयान है।

हम्द यानि अल्लाह की बड़ाई बयान करना

हर काम की शुरूआत में बिस्मिल्लाह की तरह अल्लाह की बड़ाई का बयान भी ज़रूरी है।

कभी अल्लाह की तारीफ़ और उसकी बड़ाई का बयान अनिवार्य या वाजिब होता है।

जैसे जुमे के ख़ुत्बे में, कभी मुस्तहब यानी अच्छा होता है।

जैसे निकाह के ख़ुत्बे में या दुआ में या किसी अहम काम में और हर खाने पीने के बाद।

कभी सुन्नते मुअक्कदा ( यानि नबी का वह तरीक़ा जिसे अपनाने की ताकीद आई हो।) जैसे छींक आने के बाद। ( तहतावी )

“रब्बिल आलमीन“

( मतलब मालकि सारे जहां वालों का ) में इस बात की तरफ इशारा है कि सारी कायनात या पूरी सृष्टि ( यानी की जमीं आसमान सूरज चाँद पानी हवा हर शै पुरे ब्रहमांड की) अल्लाह की बनाई हुई है।

ओर इसमें जो कुछ है वह सब अल्लाह ही की मोहताज ( निर्भर ){depend} है।

और अल्लाह तआला हमेशा से है। ओर हमेशा के लिये है।

ज़िन्दगी और मौत के जो पैमाने हमने बना रखे हैं।अल्लाह उन सबसे पाक है, वह क़ुदरत वाला है।

”रब्बिल आलमीन” के दो शब्दों (two words) में अल्लाह से तअल्लुक़ रखने वाली हमारी जानकारी की सारी मन्ज़िलें तय हो गई।

“मालिके यौमिद्दीन”
( मतलब इन्साफ वाले दिन का मालिक ) में यह बता दिया गया। कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं है।

क्योंकि सब उसकी मिल्क में है और जो ममलूक यानी मिल्क में होता है उसे पूजा नहीं जा सकता।

इसी से मालूम हुआ कि दुनिया कर्म की धरती है और इसके लिये एक आख़िरत यानी अन्त है।

दुनिया के खत्म होने के बाद ( मतलब क़यामत या प्रलय के बाद ) एक दिन जज़ा यानी बदले या हिसाब का है।

इससे पुनर्जन्म का सिद्धान्त या नज़रिया ग़लत साबित हो गया।

“इय्याका नअबुदु”

( मतलब की हम तेरी ही इबादत करे या हम तुझी को पूजें ) अल्लाह की ज़ात और उसकी खूबियों के बयान के बाद यह फ़रमाना इशारा करता है।

कि आदमी का अक़ीदा ( यकीन ) उसके कर्म से उपर है। और इबादत या पूजा पाठ का क़ुबूल किया जाना अक़ीदे की अच्छाई पर है।

इस आयत में मूर्ति पूजा यानि शिर्क का भी रद है। कि अल्लाह तआला के सिवा इबादत किसी के लिये नहीं हो सकती।

“वइय्याका नस्तईन”

( मतलब और तुझी से मदद चाहें ) में यह सिखाया गया कि मदद चाहना।

चाहे किसी माध्यम या जरिये से हो।

या फिर सीधे सीधे या डायरैक्ट, हर तरह अल्लाह तआला के साथ ख़ास है।सच्चा मदद करने वाला वही है।

बाक़ि मदद के जो ज़रिये या माध्यम है वो सब अल्लाह ही की मदद के प्रतीक या निशान है।

बन्दे को चाहिये कि अपने पैदा करने वाले पर नज़र रखे और हर चीज़ में उसी के दस्ते क़ुदरत को काम करता हुआ माने।

इससे यह समझना कि अल्लाह के नबियों और वलियों से मदद चाहना शिर्क है।

ऐसा समझना ग़लत है क्योंकि जो लोग अल्लाह के क़रीबी और ख़ास बन्दे है। उनकी इमदाद दर अस्ल अल्लाह ही की मदद है।

अगर इस आयत के वो मानी होते जो वहाबियों ने समझे तो क़ुरआन शरीफ़ में “अईनूनी बि क़ुव्वतिन” और “इस्तईनू बिस सब्रे वसल्लाह” क्यों आता, और हदीसों में अल्लाह वालों से मदद चाहने की तालीम क्यों दी जाती।

“इहदिनस सिरातल मुस्तक़ीम”

( मतलब हमको सीधा रास्ता चला ) इसमें अल्लाह (Allah) की ज़ात और

उसकी ख़ूबियों की पहचान के बाद उसकी इबादत ( यानी अल्लाह की इबादत ), उसके बाद दुआ की तालीम दी गई है।

इससे यह मालूम हुआ कि बन्दे को इबादत के बाद दुआ (Prayer)में लगा रहना चाहिये।

मतलब नमाज़ के बाद दुआ करना करते रहना चाहिए।

हदीस शरीफ़ में भी नमाज़ के बाद दुआ की तालीम ( शिक्षा ) दी गई है।

( तिबरानी और बेहिक़ी )

सिराते मुस्तक़ीम

सिराते मुस्तक़ीम का मतलब इस्लाम या क़ुरआन नबीये करीम हुजू़र सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का रहन सहन या हुज़ूर या हुज़ूर के घर वाले और साथी हैं।

इससे साबित होता है कि सिराते मुस्तक़ीम यानी सीधा रास्ता अहले सुन्नत का तरीक़ा है।

जो हुज़ूर नबीये करीम सल्लाहो अलैहे वसल्लम के घराने वालों, उनके साथी और सुन्नत व क़ुरआन और मुस्लिम जगत सबको मानते हैं।

“सिरातल लज़ीना अनअम्ता अलैहिम”

( मतलब रास्ता उनका जिन पर तुने एहसान किया )

यह पहले वाले वाक्य या जुमले की तफ़सील यानी विवरण है कि सिराते मुस्तक़ीम से मुसलमानों का तरीक़ा मुराद है।

इससे बहुत सी बातों का हल निकलता है कि जिन बातों पर बुज़ुर्गों ने अमल किया वही सीधा रास्ता की तारीफ़ में आता है।

“गै़रिल मग़दूबे अलैहिम वलद दॉल्लीन “

( मतलब न उनका जिन पर ग़ज़ब हुआ और न बहके हुओ का )

इसमें हिदायत दी गई है कि सच्चाई की तलाश करने वालों को अल्लाह के दुश्मनों से दूर रहना चाहिये।

और उनके रास्ते, रस्मों और रहन-सहन के तरीक़े से परहेज़ रखना ज़रूरी है।

हदीस की किताब ( Book of hadith ) तिरमिजी़ में आया है कि “मग़दूबे अलैहिम” यहूदियों और “दॉल्लीन” इसाईयों के लिये आया है।

📌 नोट: – सूरह फ़ातिहा के ख़त्म पर “आमीन” कहना सुन्नत यानी नबीये करीम का तरीक़ा है, “आमीन” के मानी है “ऐसा ही कर” या “कु़बूल फ़रमा”।

ये क़ुरआन शरीफ का शब्द नहीं है। सूरह फ़ातिहा नमाज़ में पढ़ी जाने या नमाज़ के अलावा, इसके आख़िर में आमीन कहना सुन्नत है।

हज़रत इमामे आज़म का मज़हब यह है कि नमाज़ में आमीन आहिस्ता धीरे से या धीमी आवाज़ में कहा जाए।

मेरे प्यारे दीनी भाईयों और बहनों आपसे गुज़ारिश है की आप इस पोस्ट को आगे भी शेयर करें जिससे दीनी जानकारी औरो के पास भी पहुँच सके।

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