Surah Noor in Hindi Translation Pdf | सूरह नूर हिंदी में तर्जुमा के साथ

Last updated on दिसम्बर 17th, 2022 at 04:17 अपराह्न

दोस्तों, इस पोस्ट में हमने आपके लिए सूरह नूर (Surah Noor in Hindi) से जुड़ी पूरी जानकारी हिंदी में मौजूद कराने की पूरी कोशिश की है,

जैसे की सूरह नूर हिंदी में, सूरह नूर का हिंदी तर्जुमा और सूरह नूर की पीडीऍफ़।

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📌नोट: – ” कोशिश करें की आप कुरान को अरबी भाषा ही में पढ़ें, जिससे अलफ़ाज़ में कोई गलती न हो। “

दोस्तों, सूरह नूर हिंदी में पढ़ने से पहले हमें चाहिए की हम सूरह से जुड़ी कुछ जरूरी बातें जान लें।

आपको बताते चलें की Surah Noor का हिंदी मतलब होता है: – “रोशनी”।

सूरह नूर कुरान करीम के 18वें पारा में मौजूद 24वीं सूरह है। यह मदनी सूरह है।

सूरह का नामसूरह अन-नूर
पारा नंबर18
सूरह नंबर24
कुल आयतें64
कुल रुकू9

सूरह नूर हिंदी में | Surah Noor In Hindi Text

दोस्तों यहाँ नीचे हमने सूरह नूर को हिंदी में मौजूद कराया है।

आप नीचे दी गयी Surah Noor Hindi Mein Text, को पढ़कर आसानी के साथ इस सूरह नूर की तिलावत कर सकते हैं।

अ ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम
बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम

सूरतुन् अन्ज़ल्नाहा व फ़रज़्नाहा व अन्ज़ल्ना फ़ीहा आयातिम् बय्यिनातिल् लअ़ल्लकुम् तज़क्करून (1)

अज़्ज़ानि-यतु वज़्ज़ानी फ़ज्लिदू कुल-ल् वाहिदिम्-मिन्हुमा मि-अ-त जल्दतिंव्-व ला तअ्खुज्कुम् बिहिमा रअ्-फ़तुन फ़ी दीनिल्लाहि इन् कुन्तुम् तुअ्मिनू-न बिल्लाहि वल्यौमिल्-आखिरि वल्यश्-हद् अ़ज़ाबहुमा ताइ-फ़तुम् मिनल्-मुअ्मिनीन (2)

अज़्जा़नी ला यन्किहु इल्ला जा़नि-यतन् औ मुशिर-कतंव्-वज़्जा़नि-यतु ला यन्किहुहा इल्ला जा़निन् औ मुश्रिकुन् व हुर्रि-म ज़ालि-क अ़लल्-मुअ्मिनीन (3)

वल्लज़ी-न यरमूनल् मुह्सनाति सुम्-म लम् यअतू बि-अर्-ब-अ़ति शु-हदा-अ फ़ज्लिदूहुम् समानी-न जल्दतंव्-व ला तक़्बलू लहुम् शहा-दतन् अ-बदन् व उलाइ-क हुमुल्-फ़ासिकून (4)

इल्लल्लज़ी-न ताबू मिम्-बअ्दि जा़लि-क व अस्लहू फ़-इन्नल्ला-ह ग़फूरूर्रहीम (5)
वल्लज़ी-न यरम्-न अज़्वाजहुम् व लम् यकुल्लहुम् शु-हदा-उ इल्ला अन्फुसुहुम् फ़-शहा-दतु अ-हदिहिम्

अर-बअु शहादातिम्-बिल्लाहि इन्नहू लमिनस्-सादिक़ीन (6)

वल्ख़ामि-सतु अन्-न लअ्-नतल्लाहि अ़लैहि इन् का-न मिनल्-काज़िबीन (7)

व यद्रउ अ़न्हल्-अ़ज़ा-ब अन् तश्ह-द अर्ब-अ़ शहादातिम्-बिल्लाहि इन्नहू लमिनल्-काज़िबीन (8)

वल्ख़ामि-स-त अन्-न ग-ज़बल्लाहि अ़लैहा इन का-न मिनस्-सादिक़ीन (9)

व लौ ला फ़ज़्लुल्लाहि अ़लैकुम् व रह्मतुहू व अन्नल्ला-ह तव्वाबुन् हकीम (10)*

इन्नल्लज़ी-न जाऊ बिल्-इफ़्कि अुस्बतुम्-मिन्कुम् , ला तह्सबूहु शर्रल्-लकुम , बल् हु-व खै़रुल्-लकुम , लिकुल्लिम्-रिइम्-मिन्हुम् मक्त-स-ब मिनल्-इस्मि वल्लज़ी तवल्ला किब्रहू मिन्हुम् लहू अ़ज़ाबुन् अ़ज़ीम (11)

लौ ला इज् समिअ्तुमूहु ज़न्नल्-मुअ्मिनू-न वल्-मुअ्मिनातु बिअन्फुसिहिम् खैरंव्-व कालू हाज़ा इफ़्कुम्-मुबीन (12)

लौ ला जाऊ अ़लैहि बि-अर्-ब-अ़ति शु-हदा-अ फ़-इज् लम् यअ्तू बिश्शु-हदा-इ फ़-उलाइ-क अिन्दल्लाहि हुमुल-काज़िबून (13)

व लौ ला फ़ज़्लुल्लाहि अ़लैकुम् व रह्मतुहू फ़िद्दुन्या वल्-आख़िरति ल-मस्सकुम् फ़ीमा अफज़्तुम् फ़ीहि-अ़ज़ाबुन् अज़ीम (14)

इज् तलक़्कौ़नहू बिअल्सि-नतिकुम् व तकूलू-न बिअफ़्वाहिकुम् मा लै-स लकुम् बिही अ़िल्मुंव्-व तहसबूनहू हय्यिनंव्-व हु-व अ़िन्दल्लाहि अ़ज़ीम (15)

व लौ ला इज् समिअ्तुमूहु कुल्तुम् मा यकूनु लना अन् न-तकल्ल-म बिहाज़ा सुब्हान-क हाज़ा बुह्तानुन् अ़ज़ीम (16)

यअिजुकुमुल्लाहु अन् तअूदू लिमिस्लिही अ-बदन् इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन (17)

व युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल्-आयाति , वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम (18)

इन्नल्लज़ी-न युहिब्बू-न अन् तशीअ़ल्-फ़ाहि-शतु फ़िल्लज़ी-न आमनू लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीमुन् फ़िद्दुन्या वल्-आख़िरति , वल्लाहु यअ्लमु व अन्तुम् ला तअ्लमून (19)

व लौ ला फ़ज़्लुल्लाहि अ़लैकुम् व रह्मतुहू व अन्नल्ला-ह रऊफुर-रहीम • (20)*

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तबिअू खु़तुवातिश्शैतानि , व मंय्यत्तबिअ् खुतुवातिश्शैतानि फ़-इन्नहू यअ्मुरु बिल्फ़हशा-इ वल्मुन्करि , व लौ ला फ़ज़्लुल्लाहि अ़लैकुम् व रह़्मतुहू मा ज़का मिन्कुम् मिन् अ-हदिन् अ-बदंव्-व लाकिन्नल्ला-ह युज़क्की मंय्यशा-उ , वल्लाहु समीअुन् अ़लीम (21)

व ला यअ्तलि उलुल्-फ़ज्लि मिन्कुम् वस्स-अ़ति अंय्युअतू उलिल्-कुरबा वल्मसाकी-न वल्मुहाजिरी-न फ़ी सबीलिल्लाहि वल्-यअ्फू वल्-यस्फ़हू , अला तुहिब्बू-न अंय्यग़्फिरल्लाहु लकुम् , वल्लाहु ग़फूरूर्रहीम (22)

इन्नल्लज़ी-न यरमूनल-मुह्सनातिल् ग़ाफ़िलातिल्-मुअ्मिनाति लुअिनू फिद्दुन्या वल-आख़िरति व लहुम् अ़ज़ाबुन् अ़ज़ीम (23)

यौ-म तश्-हदु अ़लैहिम् अल्सि-नतुहुम् व ऐदीहिम् व अरजुलूहुम् बिमा कानू यअ्मलून (24)

यौ मइज़िंय्-युवफ़्फ़ीहिमुल्लाहु दीनहुमुल्-हक्-क़ व यअ्लमू-न अन्नल्ला-ह हुवल्-हक़्कुल-मुबीन (25)

अल्ख़बीसातु लिल्ख़बीसी-न वल्ख़बीसू-न लिल्ख़बीसाति वत्तय्यिबातु लित्तय्यिबी-न वत्तय्यिबू-न लित्तय्यिबाति उलाइ-क मुबर्रऊ-न मिम्मा यकूलू-न , लहुम् मग्फि-रतुंव्-व रिज़्कुन् करीम (26)*

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तद्खुलू बुयूतन् गै़-र बुयूतिकुम् हत्ता तस्तअ्निसू व तुसल्लिमू अ़ला अह़्लिहा , ज़ालिकुम् खै़रुल्-लकुम् लअ़ल्लकुम् तज़क्करून (27)

फ़-इल्लम् तजिदू फ़ीहा अ-हदन् फ़ला तद्ख़ुलूहा हत्ता युअ्-ज़-न लकुम् व इन् की-ल लकुमुर्जिअू फ़रजिअू हु-व अज़्का लकुम् , वल्लाहु बिमा तअ्मलू-न अलीम (28)

लै-स अ़लैकुम् जुनाहुन् अन् तद्खुलू बुयूतन् गै़-र मस्कूनतिन् फ़ीहा मताअुल्-लकुम् , वल्लाहु यअ्लमु मा तुब्दू-न व मा तक्तुमून (29)

कुल लिल्-मुअ्मिनी-न यगुज़्जू मिन् अब्सारिहिम् व यह्फ़जू फुरू-जहुम् , ज़ालि-क अज़्का लहुम् , इन्नल्ला-ह ख़बीरूम्-बिमा यस्नअून (30)

व कुल लिल्-मुअ्मिनाति यग्जुज्-न मिन् अब्सारिहिन्-न व यह्फ़ज्-न फुरू-जहुन्-न व ला युब्दी-न ज़ीन-तहुन्-न इल्ला मा ज़-ह-र मिन्हा वल्यज्रिब्-न बिखुमुरिहिन्-न अ़ला जुयूबिहिन्-न व ला युब्दी-न जीन-तहुन्-न इल्ला लिबुअ़ू-लतिहिन्-न औ आबाइ-हिन्-न औ आबाइ-बुअू-लतिहिन्-न औ अब्नाइ-हिन्-न औ अब्ना-इ बुअू-लतिहिन्-न औ इख़्वानिहिन्-न औ बनी इख़्वानिहिन्-न औ बनी अ-ख़वातिहिन्-न औ निसाइ-हिन्-न औ मा म-लकत् ऐमानुहुन्-न अवित्ताबिअ़ी-न गै़रि उलिल्-इरबति मिनर्-रिजालि अवित्-तिफ़्लिल्लज़ी-न लम् यज़्हरू अ़ला औरातिन्निसा-इ व ला यज्रिब्-न बि-अर्जुलिहिन्-न लियुअ्-ल-म मा युख्फी-न मिन् ज़ीनतिहिन्-न , व तूबू इलल्लाहि जमीअ़न् अय्युहल-मुअ्मिनू-न लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून (31)

व अन्किहुल-अयामा मिन्कुम् वस्सालिही-न मिन् अिबादिकुम व इमा-इकुम् , इंय्यकूनू फु-करा-अ युग्निहिमुल्लाहु मिन् फ़ज्लिही , वल्लाहु वासिअुन् अ़लीम (32)

वल्-यस्तअ्फिफ़िल्लज़ी-न ला यजिदू-न निकाहन हत्ता युग्नि-यहुमुल्लाहु मिन् फ़ज़्लिही , वल्लज़ी-न यब्तगूनल-किता-ब मिम्मा म-लकत् ऐमानुकुम् फ़कातिबूहुम् इन् अ़लिम्तुम् फ़ीहिम् खैरंव्-व आतूहुम् मिम्-मालिल्लाहिल्लज़ी आताकुम , व ला तुकरिहू फ़-तयातिकुम अलल्बिगा-इ इन् अरद्-न त-हस्सुनल्-लितब्तगू अ़-रज़ल-हयातिद्दुन्या , व मंय्युकरिह्हुन्-न फ़-इन्नल्ला-ह मिम्-बअ्दि इक्राहिहिन्-न गफूरूर्-रहीम (33)

व ल-कद् अन्ज़ल्ना इलैकुम् आयातिम्-मुबय्यिनातिंव्-व म-सलम्-मिनल्लज़ी-न ख़लौ मिन् क़ब्लिकुम् व मौअि-ज़तल्-लिल्मुत्तक़ीन (34)*

अल्लाहु नूरूस्समावाति वल्अर्जि , म-सलु नूरिही कमिश्कातिन् फीहा मिस्बाहुन् , अल-मिस्बाहु फ़ी जुजाजतिन् , अज़्जु़जा-जतु क-अन्नहा कौकबुन् दुर्रिय्-युंय्यू-कदु मिन् श-ज-रतिम् मुबार-कतिन् जै़तूनतिल्-ला शर्किय्यतिंव् व ला ग़रबिय्यतिंय्-यकादु जै़तुहा युज़ी-उ व लौ लम् तम्सरहु नारुन् , नूरुन् अला नूरिन् , यह्दिल्लाहु लिनूरिही मंय्यशा-उ , व यज़्रिबुल्लाहुल्-अम्सा-ल लिन्नासि , वल्लाहु बिकुल्लि शैइन् अ़लीम (35)

फ़ी बुयूतिन् अज़िनल्लाहु अन् तुर्-फ़-अ़ व युज़्क-र फ़ीहस्मुहू युसब्बिहु लहू फ़ीहा बिल्-गुदुव्वि वल्-आसाल (36)

रिजालुल् ला तुल्हीहिम् तिजा-रतुंव्-व ला बैअुन् अ़न् जिक्रिल्लाहि व इकामिस्सलाति व ईताइज़्ज़काति यखा़फू-न यौमन् त-तक़ल्लबु फीहिल्-कुलूबु वल्-अब्सार (37)

लियज्ज़ि-यहुमुल्लाहु अह्स-न मा अ़मिलू व यज़ी-दहुम् मिन् फ़ज्लिही , वल्लाहु यर्जुकु मंय्यशा-उ बिगै़रि हिसाब (38)

वल्लज़ी-न क-फरू अअ्मालुहुम् क-सराबिम् बिकी-अतिंय् यह्सबुहुजू-ज़म्आनु मा-अन्-हत्ता , इजा़ जा-अहू लम् यजिद्हू शैअंव्-व व-जदल्ला-ह अिन्दहू फ़-वफ़्फा़हु हिसा-बहू , वल्लाहु सरीअुल-हिसाब (39)

औ क-जुलुमातिन् फ़ी बहरिल लुज्जिय्यिंय्-यग्शाहु मौजुम्-मिन् फौकिही मौजुम्-मिन् फौकिही सहाबुन , जुलुमातुम्-बअजुहा फ़ौ-क बअ्ज़िन् , इज़ा अख़र-ज य-दहू लम् य-कद् यराहा , व मल्लम् यज्अ़लिल्लाहु लहू नूरन् फ़मा लहू मिन्-नूर (40)*

अलम् त-र अन्नल्ला-ह युसब्बिहु लहू मन् फ़िस्समावाति वल्अर्ज़ि वत्तैरु साफ्फातिन् , कुल्लुन् क़द् अ़लि-म सला-तहू व तस्बी-हहू , वल्लाहु अ़लीमुम् बिमा यफ्अ़लून (41)

व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्जि व इलल्लाहिल्-मसीर (42)

अलम् त-र अन्नल्ला-ह युज्जी सहाबन् सुम्-म युअल्लिफु बैनहू सुम्-म यज्-अ़लुहू रूकामन्-फ़-तरल्-वद्-क़ यख़्रूजु मिन् ख़िलालिही व युनज्जिलु मिनस्समा-इ मिन् जिबालिन् फीहा मिम्-ब रदिन् फयुसीबु बिही मंय्यशा-उ व यसरिफुहू अम्-मंय्यशा-उ , यकादु सना बरकिही यज़्हबु बिल्अब्सार (43)

युक़ल्लिबुल्लाहुल्लै-ल वन्नहा-र , इन्-न फी ज़ालि-क लअिब्- रतल्-लिउलिल्-अब्सार (44)

वल्लाहु ख़-ल-क कुल्-ल दाब्बतिम् मिम्-माइन् फ़-मिन्हुम् मंय्यम्शी अ़ला बत्निही व मिन्हुम् मंय्यम्शी अ़ला रिज्लैनि व मिन्हुम् मंय्यम्शी अ़ला अर्-बअिन् , यख़्लुकुल्लाहु मा यशा-उ , इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर (45)

ल-क़द् अन्ज़ल्ना आयातिम्-मुबय्यिनातिन् , वल्लाहु यह्दी मंय्यशा-उ इला सिरातिम्-मुस्तकीम (46)

व यकूलू-न आमन्ना बिल्लाहि व बिर्रसूलि व अ-तअ्ना सुम्-म य-तवल्ला फ़रीकुम्-मिन्हुम् मिम्-बअ्दि ज़ालि-क , व मा उलाइ-क बिल्-मुअ्मिनीन (47)

व इज़ा दुअू इलल्लाहि व रसूलिही लि-यह्कु-म बैनहुम् इज़ा फ़रीकुम्-मिन्हुम् मुअ्रिजून (48)

व इंय्यकुल्-लहुमुल्-हक़्कु यअ्तू इलैहि मुज्अ़िनीन (49)

अ-फी कुलूबिहिम् म-रजुन अमिरताबू अम् यखा़फू-न अंय्यहीफ़ल्लाहु अ़लैहिम् व रसूलुहू , बल् उलाइ-क हुमुज्ज़ालिमून • (50)*

इन्नमा का-न कौ़लल-मुअ्मिनी-न इज़ा दुअू इलल्लाहि व रसूलिही लि-यह्कु-म बैनहुम् अंय्यकूलू समिअ्ना व अतअ्ना , व उलाइ-क हुमुल्-मुफ्लिहून (51)

व मंय्युतिअिल्ला-ह व रसूलहू व यख़्शल्ला-ह व यत्तक्हि फ़-उलाइ-क हुमुल्-फ़ाइजून (52)

व अक़्समू बिल्लाहि जह्-द ऐमानिहिम् ल-इन् अमर्-तहुम् ल-यख़्रूजुन्-न , कुल्-ल तुक्सिमू ता-अ़तुम् मअ़्रू-फतुन् , इन्नल्ला-ह ख़बीरुम्-बिमा तअ्मलून (53)

कुल अतीअुल्ला-ह व अतीअुसुर्रसू-ल फ-इन् तवल्लौ फ़-इन्नमा अ़लैहि मा हुम्मि-ल व अ़लैकुम् मा हुम्मिल्तुम् , व इन् तुतीअूहु तह्तदू , व मा-अ़लर्रसूलि इल्लल्-बलागुल्-मुबीन (54)

व-अ़दल्लाहुल्लज़ी-न आमनू मिन्कुम् व अमिलुस्सालिहाति ल-यस्तख़्लिफ़न्नहुम् फ़िल्अर्जि क-मस्तख़्ल-फ़ल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् व ल-युमक्किनन्-न लहुम् दीनहुमुल्लज़िर्-तज़ा लहुम् व लयुबद्दिलन्नहुम् मिम्-बअ्दि ख़ौफ़िहिम् अम्नन् , यअ्बुदू-ननी ला युश्रिकू़-न बी शैअन् , व मन् क-फ-र बअ्-द ज़ालि-क फ-उलाइ-क हुमुल्-फ़ासिकून (55)

व अक़ीमुस्सला-त व आतुज़्ज़का-त व अतीअुर्रसू-ल लअ़ल्लकुम् तुर्-हमून (56)

ला तह्स-बन्नल्लज़ी-न क-फरू मुअ्जिज़ी-न फिलअर्जि व मअ् वाहुमुन्नारू , व ल-बिअ्सल्-मसीर (57)*

या अय्यु हल्लज़ी-न आमनू लि-यस्तअ्जिनकुमुल्लज़ी-न म-लकत् ऐमानुकुम् वल्लज़ी-न लम् यब्लुगुल-हुलु-म मिन्कुम् सला-स मर्रातिन् मिन् कब्लि सलातिल्-फ़ज्रि व ही-न त-ज़अ़ू-न सिया-बकुम् मिनज़्ज़ही-रति व मिम्-बअ्दि सलातिल्-अिशा-इ , सलासु औ़रातिल्-लकुम् , लै-स अ़लैकुम् व ला अ़लैहिम् जुनाहुम् बअ्-दहुन्-न , तव्वाफू-न अ़लैकुम् बअ्जुकुम् अ़ला बअ्ज़िन् , कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल्-आयाति , वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम (58)

व इज़ा ब-लगल्-अत् फालु मिन्कुमुल्-हुलु-म फ़ल्यस्तअ्ज़िनू कमस्तअ्-ज़नल्लज़ी-न मिन् कब्लिहिम् , कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुम् आयातिही , वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम (59)

वल्क़वाअिदु मिनन्निसाइल्लाती ला यरजू-न निकाहन् फलै-स अ़लैहिन्-न जुनाहुन् अंय्य-ज़अ्-न सिया-बहुन्-न गै-र मु-तबर्रिजातिम्-बिज़ी-नतिन् , व अंय्यस्तअ्फ़िफ्-न खै़रुल लहुन्-न , वल्लाहु समीअुन् अलीम (60)

लै-स अ़लल्-अअ्मा ह-रजुंव्-व ला अ़लल्-अअ्रजि ह-रजुंव्-व ला अ़लल्-मरीज़ि ह-रजुंव्-व ला अ़ला अन्फुसिकुम् अन् तअ्कुलू मिम्-बुयूतिकुम् औ बुयूति आबाइकुम् औ बुयूति उम्महातिकुम् औ बुयूति इख़्वानिकुम् औ बुयूति अ-ख़वातिकुम् औ बुयूति अअ्मामिकुम् औ बुयूति अ़म्मातिकुम् औ बुयूति अख़्वालिकुम् औ बुयूति ख़ालातिकुम औ मा मलक्तुम् मफ़ाति-हहू औ सदीक़िकुम् , लै-स अ़लैकुम् जुनाहुन् अन् तअ्कुलू जमीअ़न् औ अश्तातन् , फ़-इज़ा दख़ल्तुम् बुयूतन् फ़-सल्लिमू अला अन्फुसिकुम् तहिय्य-तम् मिन् अिन्दिल्लाहि मुबार-कतन् तय्यि-बतन् , कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल्आयाति लअ़ल्लकुम तअ्किलून (61)*

इन्नमल्-मुअ्मिनूनल्लज़ी-न आमनू बिल्लाहि व रसूलिही व इज़ा कानू म-अ़हू अ़ला अम्रिन् जामिअ़िल् लम् यज़्हबू हत्ता यस्तअ्ज़िनूहु , इन्नल्लज़ी-न यस्तअ्ज़िनू-न-क उलाइ-कल्लज़ी-न युअ्मिनू-न बिल्लाहि व रसूलिही फ़-इज़स्तअ्-ज़नू-क लिबअ्ज़ि शअ्निहिम् फ़अज़ल-लिमन् शिअ्-त मिन्हुम् वस्तग्फिर लहुमुल्ला-ह इन्नल्ला-ह ग़फूरुर्-रहीम (62)

ला तज्अलू दुआ़अर्रसूलि बैनकुम् क-दुआ़-इ बअ्ज़िकुम् बअ्जन् , कद् यअ्लमुल्लाहुल्लज़ी-न य-तसल्ललू-न मिन्कुम् लिवाज़न् फ़ल्यह्ज़रिल्लज़ी-न युखालिफू-न अन् अम्रिही अन् तुसी-बहुम् फित्-नतुन् औ युसी-बहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम (63)

अला इन्-न लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति वल्अर्जि , कद् यअ्लमु मा अन्तुम् अ़लैहि , व यौ-म युर्जअू-न इलैहि फ़युनब्बिउहुम् बिमा अ़मिलू , वल्लाहु बिकुल्लि शैइन् अलीम (64)*

जैसा की आपने ऊपर सूरह नूर को हिंदी टेक्स्ट के जरिये पढ़ ही लिया होगा।

हम आपसे दरख्वास्त करते हैं कि आप इस Surah Noor Translation in Hindi को भी पढ़ें।

क्यूंकि Surah Nur का तर्जुमा पढ़कर हमें समझ आएगा की अल्लाह ने इस सूरह में क्या इरशाद फ़रमाया है।

सूरह नूर का तर्जुमा | Surah Noor Ka Tarjuma

सूरतुन् अन्ज़ल्नाहा व फ़रज़्नाहा व अन्ज़ल्ना फ़ीहा आयातिम् बय्यिनातिल् लअ़ल्लकुम् तज़क्करून (1)
(ये) एक सूरा है जिसे हमने नाज़िल किया है और उस (के एहक़ाम) को फर्ज क़र दिया है और इसमें हमने वाज़ेए व रौशन आयतें नाज़िल की हैं ताकि तुम (ग़ौर करके) नसीहत हासिल करो (1)

अज़्ज़ानि-यतु वज़्ज़ानी फ़ज्लिदू कुल-ल् वाहिदिम्-मिन्हुमा मि-अ-त जल्दतिंव्-व ला तअ्खुज्कुम् बिहिमा रअ्-फ़तुन फ़ी दीनिल्लाहि इन् कुन्तुम् तुअ्मिनू-न बिल्लाहि वल्यौमिल्-आखिरि वल्यश्-हद् अ़ज़ाबहुमा ताइ-फ़तुम् मिनल्-मुअ्मिनीन (2)
ज़िना करने वाली औरत और ज़िना करने वाले मर्द इन दोनों में से हर एक को सौ (सौ) कोडे मारो और अगर तुम ख़ुदा और रोजे आख़िरत पर ईमान रखते हो तो हुक्मे खुदा के नाफिज़ करने में तुमको उनके बारे में किसी तरह की तरस का लिहाज़ न होने पाए और उन दोनों की सज़ा के वक्त मोमिन की एक जमाअत को मौजूद रहना चाहिए (2)

अज़्जा़नी ला यन्किहु इल्ला जा़नि-यतन् औ मुशरि-कतंव्-वज़्जा़नि-यतु ला यन्किहुहा इल्ला जा़निन् औ मुश्रिकुन् व हुर्रि-म ज़ालि-क अ़लल्-मुअ्मिनीन (3)
ज़िना करने वाला मर्द तो ज़िना करने वाली औरत या मुशरिका से निकाह करेगा और ज़िना करने वाली औरत भी बस ज़िना करने वाले ही मर्द या मुशरिक से निकाह करेगी और सच्चे ईमानदारों पर तो इस क़िस्म के ताल्लुक़ात हराम हैं (3)

वल्लज़ी-न यरमूनल् मुह्सनाति सुम्-म लम् यअतू बि-अर्-ब-अ़ति शु-हदा-अ फ़ज्लिदूहुम् समानी-न जल्दतंव्-व ला तक़्बलू लहुम् शहा-दतन् अ-बदन् व उलाइ-क हुमुल्-फ़ासिकून (4)
और जो लोग पाक दामन औरतों पर (ज़िना की) तोहमत लगाएँ फिर (अपने दावे पर) चार गवाह पेश न करें तो उन्हें अस्सी कोड़ें मारो और फिर (आइन्दा) कभी उनकी गवाही कुबूल न करो और (याद रखो कि) ये लोग ख़ुद बदकार हैं (4)

इल्लल्लज़ी-न ताबू मिम्-बअ्दि जा़लि-क व अस्लहू फ़-इन्नल्ला-ह ग़फूरूर्रहीम (5)
मगर हाँ जिन लोगों ने उसके बाद तौबा कर ली और अपनी इसलाह की तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (5)

वल्लज़ी-न यरमू-न अज़्वाजहुम् व लम् यकुल्लहुम् शु-हदा-उ इल्ला अन्फुसुहुम् फ़-शहा-दतु अ-हदिहिम् अर-बअु शहादातिम्-बिल्लाहि इन्नहू लमिनस्-सादिक़ीन (6)
और जो लोग अपनी बीवियों पर (ज़िना) का ऐब लगाएँ और (इसके सुबूत में) अपने सिवा उनका कोई गवाह न हो तो ऐसे लोगों में से एक की गवाही चार मरतबा इस तरह होगी कि वह (हर मरतबा) ख़ुदा की क़सम खाकर बयान करे कि वह (अपने दावे में) जरुर सच्चा है (6)

वल्ख़ामि-सतु अन्-न लअ्-नतल्लाहि अ़लैहि इन् का-न मिनल्-काज़िबीन (7)
और पाँचवी (मरतबा) यूँ (कहेगा) अगर वह झूट बोलता हो तो उस पर ख़ुदा की लानत (7)

व यद्रउ अ़न्हल्-अ़ज़ा-ब अन् तश्ह-द अर्ब-अ़ शहादातिम्-बिल्लाहि इन्नहू लमिनल्-काज़िबीन (8)
और औरत (के सर से) इस तरह सज़ा टल सकती है कि वह चार मरतबा ख़ुदा की क़सम खा कर बयान कर दे कि ये शख्स (उसका शौहर अपने दावे में) ज़रुर झूठा है (8)

वल्ख़ामि-स-त अन्-न ग-ज़बल्लाहि अ़लैहा इन का-न मिनस्-सादिक़ीन (9)
और पाँचवी मरतबा यूँ करेगी कि अगर ये शख्स (अपने दावे में) सच्चा हो तो मुझ पर खुदा का ग़ज़ब पड़े (9)

व लौ ला फ़ज़्लुल्लाहि अ़लैकुम् व रह्मतुहू व अन्नल्ला-ह तव्वाबुन् हकीम (10)*
और अगर तुम पर ख़ुदा का फज़ल (व करम) और उसकी मेहरबानी न होती तो देखते कि तोहमत लगाने वालों का क्या हाल होता और इसमें शक ही नहीं कि ख़ुदा बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला हकीम है (10)

इन्नल्लज़ी-न जाऊ बिल्-इफ़्कि अुस्बतुम्-मिन्कुम् , ला तह्सबूहु शर्रल्-लकुम , बल् हु-व खै़रुल्-लकुम , लिकुल्लिम्-रिइम्-मिन्हुम् मक्त-स-ब मिनल्-इस्मि वल्लज़ी तवल्ला किब्रहू मिन्हुम् लहू अ़ज़ाबुन् अ़ज़ीम (11)
बेशक जिन लोगों ने झूठी तोहमत लगायी वह तुम्ही में से एक गिरोह है तुम अपने हक़ में इस तोहमत को बड़ा न समझो बल्कि ये तुम्हारे हक़ में बेहतर है इनमें से जिस शख्स ने जितना गुनाह समेटा वह उस (की सज़ा) को खुद भुगतेगा और उनमें से जिस शख्स ने तोहमत का बड़ा हिस्सा लिया उसके लिए बड़ी (सख्त) सज़ा होगी (11)

लौ ला इज् समिअ्तुमूहु ज़न्नल्-मुअ्मिनू-न वल्-मुअ्मिनातु बिअन्फुसिहिम् खैरंव्-व कालू हाज़ा इफ़्कुम्-मुबीन (12)
और जब तुम लोगो ने उसको सुना था तो उसी वक्त ईमानदार मर्दों और ईमानदार औरतों ने अपने लोगों पर भलाई का गुमान क्यो न किया और ये क्यों न बोल उठे कि ये तो खुला हुआ बोहतान है (12)

लौ ला जाऊ अ़लैहि बि-अर्-ब-अ़ति शु-हदा-अ फ़-इज् लम् यअ्तू बिश्शु-हदा-इ फ़-उलाइ-क अिन्दल्लाहि हुमुल-काज़िबून (13)
और जिन लोगों ने तोहमत लगायी थी अपने दावे के सुबूत में चार गवाह क्यों न पेश किए फिर जब इन लोगों ने गवाह न पेश किये तो ख़ुदा के नज़दीक यही लोग झूठे हैं (13)

व लौ ला फ़ज़्लुल्लाहि अ़लैकुम् व रह्मतुहू फ़िद्दुन्या वल्-आख़िरति ल-मस्सकुम् फ़ीमा अफज़्तुम् फ़ीहि-अ़ज़ाबुन् अज़ीम (14)
और अगर तुम लोगों पर दुनिया और आख़िरत में ख़ुदा का फज़ल (व करम) और उसकी रहमत न होती तो जिस बात का तुम लोगों ने चर्चा किया था उस की वजह से तुम पर कोई बड़ा (सख्त) अज़ाब आ पहुँचता (14)

इज् तलक़्कौ़नहू बिअल्सि-नतिकुम् व तकूलू-न बिअफ़्वाहिकुम् मा लै-स लकुम् बिही अ़िल्मुंव्-व तहसबूनहू हय्यिनंव्-व हु-व अ़िन्दल्लाहि अ़ज़ीम (15)
कि तुम अपनी ज़बानों से इसको एक दूसरे से बयान करने लगे और अपने मुँह से ऐसी बात कहते थे जिसका तुम्हें इल्म व यक़ीन न था (और लुत्फ ये है कि) तुमने इसको एक आसान बात समझी थी हॉलाकि वह ख़ुदा के नज़दीक बड़ी सख्त बात थी (15)

व लौ ला इज् समिअ्तुमूहु कुल्तुम् मा यकूनु लना अन् न-तकल्ल-म बिहाज़ा सुब्हान-क हाज़ा बुह्तानुन् अ़ज़ीम (16)
और जब तुमने ऐसी बात सुनी थी तो तुमने लोगों से क्यों न कह दिया कि हमको ऐसी बात मुँह से निकालनी मुनासिब नहीं सुबहान अल्लाह ये बड़ा भारी बोहतान है (16)

यअिजुकुमुल्लाहु अन् तअूदू लिमिस्लिही अ-बदन् इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन (17)
ख़ुदा तुम्हारी नसीहत करता है कि अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो ख़बरदार फिर कभी ऐसा न करना (17)

व युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल्-आयाति , वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम (18)
और ख़ुदा तुम से (अपने) एहकाम साफ साफ बयान करता है और ख़ुदा तो बड़ा वाक़िफकार हकीम है (18)

इन्नल्लज़ी-न युहिब्बू-न अन् तशीअ़ल्-फ़ाहि-शतु फ़िल्लज़ी-न आमनू लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीमुन् फ़िद्दुन्या वल्-आख़िरति , वल्लाहु यअ्लमु व अन्तुम् ला तअ्लमून (19)
जो लोग ये चाहते हैं कि ईमानदारों में बदकारी का चर्चा फैल जाए बेशक उनके लिए दुनिया और आख़िरत में दर्दनाक अज़ाब है और ख़ुदा (असल हाल को) ख़ूब जानता है और तुम लोग नहीं जानते हो (19)

व लौ ला फ़ज़्लुल्लाहि अ़लैकुम् व रह्मतुहू व अन्नल्ला-ह रऊफुर-रहीम • (20)*
और अगर ये बात न होती कि तुम पर ख़ुदा का फ़ज़ल (व करम) और उसकी रहमत से और ये कि ख़ुदा (अपने बन्दों पर) बड़ा शफीक़ मेहरबान है (20)

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तबिअू खु़तुवातिश्शैतानि , व मंय्यत्तबिअ् खुतुवातिश्शैतानि फ़-इन्नहू यअ्मुरु बिल्फ़हशा-इ वल्मुन्करि , व लौ ला फ़ज़्लुल्लाहि अ़लैकुम् व रह़्मतुहू मा ज़का मिन्कुम् मिन् अ-हदिन् अ-बदंव्-व लाकिन्नल्ला-ह युज़क्की मंय्यशा-उ , वल्लाहु समीअुन् अ़लीम (21)
(तो तुम देखते क्या होता) ऐ ईमानदारों शैतान के क़दम ब क़दम न चलो और जो शख्स शैतान के क़दम ब क़दम चलेगा तो वह यक़ीनन उसे बदकारी और बुरी बात (करने) का हुक्म देगा और अगर तुम पर ख़ुदा का फ़ज़ल (व करम) और उसकी रहमत न होती तो तुममें से कोई भी कभी पाक साफ न होता मगर ख़ुदा तो जिसे चहता है पाक साफ कर देता है और ख़ुदा बड़ा सुनने वाला वाकिफकार है (21)

व ला यअ्तलि उलुल्-फ़ज्लि मिन्कुम् वस्स-अ़ति अंय्युअतू उलिल्-कुरबा वल्मसाकी-न वल्मुहाजिरी-न फ़ी सबीलिल्लाहि वल्-यअ्फू वल्-यस्फ़हू , अला तुहिब्बू-न अंय्यग़्फिरल्लाहु लकुम् , वल्लाहु ग़फूरूर्रहीम (22)
और तुममें से जो लोग ज्यादा दौलत और मुक़द्दर वालें है क़राबतदारों और मोहताजों और ख़ुदा की राह में हिजरत करने वालों को कुछ देने (लेने) से क़सम न खा बैठें बल्कि उन्हें चाहिए कि (उनकी ख़ता) माफ कर दें और दरगुज़र करें क्या तुम ये नहीं चाहते हो कि ख़ुदा तुम्हारी ख़ता माफ करे और खुदा तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (22)

इन्नल्लज़ी-न यरमूनल-मुह्सनातिल् ग़ाफ़िलातिल्-मुअ्मिनाति लुअिनू फिद्दुन्या वल-आख़िरति व लहुम् अ़ज़ाबुन् अ़ज़ीम (23)
बेशक जो लोग पाक दामन बेख़बर और ईमानदार औरतों पर (ज़िना की) तोहमत लगाते हैं उन पर दुनिया और आख़िरत में (ख़ुदा की) लानत है और उन पर बड़ा (सख्त) अज़ाब होगा (23)

यौ-म तश्-हदु अ़लैहिम् अल्सि-नतुहुम् व ऐदीहिम् व अरजुलूहुम् बिमा कानू यअ्मलून (24)
जिस दिन उनके ख़िलाफ उनकी ज़बानें और उनके हाथ उनके पावँ उनकी कारस्तानियों की गवाही देगें (24)

यौ मइज़िंय्-युवफ़्फ़ीहिमुल्लाहु दीनहुमुल्-हक्-क़ व यअ्लमू-न अन्नल्ला-ह हुवल्-हक़्कुल-मुबीन (25)
उस दिन ख़ुदा उनको ठीक उनका पूरा पूरा बदला देगा और जान जाएँगें कि ख़ुदा बिल्कुल बरहक़ और (हक़ का) ज़ाहिर करने वाला है (25)

अल्ख़बीसातु लिल्ख़बीसी-न वल्ख़बीसू-न लिल्ख़बीसाति वत्तय्यिबातु लित्तय्यिबी-न वत्तय्यिबू-न लित्तय्यिबाति उलाइ-क मुबर्रऊ-न मिम्मा यकूलू-न , लहुम् मग्फि-रतुंव्-व रिज़्कुन् करीम (26)*
गन्दी औरते गन्दें मर्दों के लिए (मुनासिब) हैं और गन्दे मर्द गन्दी औरतो के लिए और पाक औरतें पाक मर्दों के लिए (मौज़ूँ) हैं और पाक मर्द पाक औरतों के लिए लोग जो कुछ उनकी निस्बत बका करते हैं उससे ये लोग बुरी उल ज़िम्मा हैं उन ही (पाक लोगों) के लिए (आख़िरत में) बख़्शिस है (26)

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तद्खुलू बुयूतन् गै़-र बुयूतिकुम् हत्ता तस्तअ्निसू व तुसल्लिमू अ़ला अह़्लिहा , ज़ालिकुम् खै़रुल्-लकुम् लअ़ल्लकुम् तज़क्करून (27)
और इज्ज़त की रोज़ी ऐ ईमानदारों अपने घरों के सिवा दूसरे घरों में (दर्राना) न चले जाओ यहाँ तक कि उनसे इजाज़त ले लो और उन घरों के रहने वालों से साहब सलामत कर लो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है (27)

फ़-इल्लम् तजिदू फ़ीहा अ-हदन् फ़ला तद्ख़ुलूहा हत्ता युअ्-ज़-न लकुम् व इन् की-ल लकुमुर्जिअू फ़रजिअू हु-व अज़्का लकुम् , वल्लाहु बिमा तअ्मलू-न अलीम (28)
(ये नसीहत इसलिए है) ताकि तुम याद रखो पस अगर तुम उन घरों में किसी को न पाओ तो तावाक़फियत कि तुम को (ख़ास तौर पर) इजाज़त न हासिल हो जाए उन में न जाओ और अगर तुम से कहा जाए कि फिर जाओ तो तुम (बे ताम्मुल) फिर जाओ यही तुम्हारे वास्ते ज्यादा सफाई की बात है और तुम जो कुछ भी करते हो ख़ुदा उससे खूब वाकिफ़ है (28)

लै-स अ़लैकुम् जुनाहुन् अन् तद्खुलू बुयूतन् गै़-र मस्कूनतिन् फ़ीहा मताअुल्-लकुम् , वल्लाहु यअ्लमु मा तुब्दू-न व मा तक्तुमून (29)
इसमें अलबत्ता तुम पर इल्ज़ाम नहीं कि ग़ैर आबाद मकानात में जिसमें तुम्हारा कोई असबाब हो (बे इजाज़त) चले जाओ और जो कुछ खुल्लम खुल्ला करते हो और जो कुछ छिपाकर करते हो खुदा (सब कुछ) जानता है (29)

कुल लिल्-मुअ्मिनी-न यगुज़्जू मिन् अब्सारिहिम् व यह्फ़जू फुरू-जहुम् , ज़ालि-क अज़्का लहुम् , इन्नल्ला-ह ख़बीरूम्-बिमा यस्नअून (30)
(ऐ रसूल) ईमानदारों से कह दो कि अपनी नज़रों को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें यही उनके वास्ते ज्यादा सफाई की बात है ये लोग जो कुछ करते हैं ख़ुदा उससे यक़ीनन ख़ूब वाक़िफ है (30)

व कुल लिल्-मुअ्मिनाति यग्जुज्-न मिन् अब्सारिहिन्-न व यह्फ़ज्-न फुरू-जहुन्-न व ला युब्दी-न ज़ीन-तहुन्-न इल्ला मा ज़-ह-र मिन्हा वल्यज्रिब्-न बिखुमुरिहिन्-न अ़ला जुयूबिहिन्-न व ला युब्दी-न जीन-तहुन्-न इल्ला लिबुअ़ू-लतिहिन्-न औ आबाइ-हिन्-न औ आबाइ-बुअू-लतिहिन्-न औ अब्नाइ-हिन्-न औ अब्ना-इ बुअू-लतिहिन्-न औ इख़्वानिहिन्-न औ बनी इख़्वानिहिन्-न औ बनी अ-ख़वातिहिन्-न औ निसाइ-हिन्-न औ मा म-लकत् ऐमानुहुन्-न अवित्ताबिअ़ी-न गै़रि उलिल्-इरबति मिनर्-रिजालि अवित्-तिफ़्लिल्लज़ी-न लम् यज़्हरू अ़ला औरातिन्निसा-इ व ला यज्रिब्-न बि-अर्जुलिहिन्-न लियुअ्-ल-म मा युख्फी-न मिन् ज़ीनतिहिन्-न , व तूबू इलल्लाहि जमीअ़न् अय्युहल-मुअ्मिनू-न लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून (31)
और (ऐ रसूल) ईमानदार औरतों से भी कह दो कि वह भी अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने बनाव सिंगार (के मक़ामात) को (किसी पर) ज़ाहिर न होने दें मगर जो खुद ब खुद ज़ाहिर हो जाता हो (छुप न सकता हो) (उसका गुनाह नही) और अपनी ओढ़नियों को (घूँघट मारके) अपने गरेबानों (सीनों) पर डाले रहें और अपने शौहर या अपने बाप दादाओं या आपने शौहर के बाप दादाओं या अपने बेटों या अपने शौहर के बेटों या अपने भाइयों या अपने भतीजों या अपने भांजों या अपने (क़िस्म की) औरतों या अपनी या अपनी लौंडियों या (घर के) नौकर चाकर जो मर्द सूरत हैं मगर (बहुत बूढे होने की वजह से) औरतों से कुछ मतलब नहीं रखते या वह कमसिन लड़के जो औरतों के पर्दे की बात से आगाह नहीं हैं उनके सिवा (किसी पर) अपना बनाव सिंगार ज़ाहिर न होने दिया करें और चलने में अपने पाँव ज़मीन पर इस तरह न रखें कि लोगों को उनके पोशीदा बनाव सिंगार (झंकार वग़ैरह) की ख़बर हो जाए और ऐ ईमानदारों तुम सबके सब ख़ुदा की बारगाह में तौबा करो ताकि तुम फलाह पाओ (31)

व अन्किहुल-अयामा मिन्कुम् वस्सालिही-न मिन् अिबादिकुम व इमा-इकुम् , इंय्यकूनू फु-करा-अ युग्निहिमुल्लाहु मिन् फ़ज्लिही , वल्लाहु वासिअुन् अ़लीम (32)
और अपनी (क़ौम की) बेशौहर औरतों और अपने नेक बख्त गुलामों और लौंडियों का निकाह कर दिया करो अगर ये लोग मोहताज होंगे तो खुदा अपने फज़ल व (करम) से उन्हें मालदार बना देगा और ख़ुदा तो बड़ी गुन्जाइश वाला वाक़िफ कार है (32)

वल्-यस्तअ्फिफ़िल्लज़ी-न ला यजिदू-न निकाहन हत्ता युग्नि-यहुमुल्लाहु मिन् फ़ज़्लिही , वल्लज़ी-न यब्तगूनल-किता-ब मिम्मा म-लकत् ऐमानुकुम् फ़कातिबूहुम् इन् अ़लिम्तुम् फ़ीहिम् खैरंव्-व आतूहुम् मिम्-मालिल्लाहिल्लज़ी आताकुम , व ला तुकरिहू फ़-तयातिकुम अलल्बिगा-इ इन् अरद्-न त-हस्सुनल्-लितब्तगू अ़-रज़ल-हयातिद्दुन्या , व मंय्युकरिह्हुन्-न फ़-इन्नल्ला-ह मिम्-बअ्दि इक्राहिहिन्-न गफूरूर्-रहीम (33)

और जो लोग निकाह करने का मक़दूर नहीं रखते उनको चाहिए कि पाक दामिनी एख्तियार करें यहाँ तक कि ख़ुदा उनको अपने फज़ल व (करम) से मालदार बना दे और तुम्हारी लौन्डी ग़ुलामों में से जो मकातबत होने (कुछ रुपए की शर्त पर आज़ादी का सरख़त लेने) की ख्वाहिश करें तो तुम अगर उनमें कुछ सलाहियत देखो तो उनको मकातिब कर दो और ख़ुदा के माल से जो उसने तुम्हें अता किया है उनका भी दो और तुम्हारी लौन्डियाँ जो पाक दामन ही रहना चाहती हैं उनको दुनियावी ज़िन्दगी के फायदे हासिल करने की ग़रज़ से हराम कारी पर मजबूर न करो और जो शख्स उनको मजबूर करेगा तो इसमें शक नहीं कि ख़ुदा उसकी बेबसी के बाद बड़ा बख्शने वाले मेहरबान है (33)

व ल-कद् अन्ज़ल्ना इलैकुम् आयातिम्-मुबय्यिनातिंव्-व म-सलम्-मिनल्लज़ी-न ख़लौ मिन् क़ब्लिकुम् व मौअि-ज़तल्-लिल्मुत्तक़ीन (34)*
और (ईमानदारों) हमने तो तुम्हारे पास (अपनी) वाज़ेए व रौशन आयतें और जो लोग तुमसे पहले गुज़र चुके हैं उनकी हालतें और परहेज़गारों के लिए नसीहत (की बाते) नाज़िल की (34)

अल्लाहु नूरूस्समावाति वल्अर्जि , म-सलु नूरिही कमिश्कातिन् फीहा मिस्बाहुन् , अल-मिस्बाहु फ़ी जुजाजतिन् , अज़्जु़जा-जतु क-अन्नहा कौकबुन् दुर्रिय्-युंय्यू-कदु मिन् श-ज-रतिम् मुबार-कतिन् जै़तूनतिल्-ला शर्किय्यतिंव् व ला ग़रबिय्यतिंय्-यकादु जै़तुहा युज़ी-उ व लौ लम् तम्सस्हु नारुन् , नूरुन् अला नूरिन् , यह्दिल्लाहु लिनूरिही मंय्यशा-उ , व यज़्रिबुल्लाहुल्-अम्सा-ल लिन्नासि , वल्लाहु बिकुल्लि शैइन् अ़लीम (35)
ख़ुदा तो सारे आसमान और ज़मीन का नूर है उसके नूर की मिसल (ऐसी) है जैसे एक ताक़ (सीना) है जिसमे एक रौशन चिराग़ (इल्मे शरीयत) हो और चिराग़ एक शीशे की क़न्दील (दिल) में हो (और) क़न्दील (अपनी तड़प में) गोया एक जगमगाता हुआ रौशन सितारा (वह चिराग़) जैतून के मुबारक दरख्त (के तेल) से रौशन किया जाए जो न पूरब की तरफ हो और न पश्चिम की तरफ (बल्कि बीचों बीच मैदान में) उसका तेल (ऐसा) शफ्फाफ हो कि अगरचे आग उसे छुए भी नही ताहम ऐसा मालूम हो कि आप ही आप रौशन हो जाएगा (ग़रज़ एक नूर नहीं बल्कि) नूर आला नूर (नूर की नूर पर जोत पड़ रही है) ख़ुदा अपने नूर की तरफ जिसे चाहता है हिदायत करता है और ख़ुदा तो हर चीज़ से खूब वाक़िफ है (35)

फ़ी बुयूतिन् अज़िनल्लाहु अन् तुर्-फ़-अ़ व युज़्क-र फ़ीहस्मुहू युसब्बिहु लहू फ़ीहा बिल्-गुदुव्वि वल्-आसाल (36)
(वह क़न्दील) उन घरों में रौशन है जिनकी निस्बत ख़ुदा ने हुक्म दिया कि उनकी ताज़ीम की जाए और उनमें उसका नाम लिया जाए जिनमें सुबह व शाम वह लोग उसकी तस्बीह किया करते हैं (36)

रिजालुल् ला तुल्हीहिम् तिजा-रतुंव्-व ला बैअुन् अ़न् जिक्रिल्लाहि व इकामिस्सलाति व ईताइज़्ज़काति यखा़फू-न यौमन् त-तक़ल्लबु फीहिल्-कुलूबु वल्-अब्सार (37)
ऐसे लोग जिनको ख़ुदा के ज़िक्र और नमाज़ पढ़ने और ज़कात अदा करने से न तो तिजारत ही ग़ाफिल कर सकती है न (ख़रीद फरोख्त) (का मामला क्योंकि) वह लोग उस दिन से डरते हैं जिसमें ख़ौफ के मारे दिल और ऑंखें उलट जाएँगी (37)

लियज्ज़ि-यहुमुल्लाहु अह्स-न मा अ़मिलू व यज़ी-दहुम् मिन् फ़ज्लिही , वल्लाहु यर्जुकु मंय्यशा-उ बिगै़रि हिसाब (38)
(उसकी इबादत इसलिए करते हैं) ताकि ख़ुदा उन्हें उनके आमाल का बेहतर से बेहतर बदला अता फरमाए और अपने फज़ल व करम से कुछ और ज्यादा भी दे और ख़ुदा तो जिसे चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है (38)

वल्लज़ी-न क-फरू अअ्मालुहुम् क-सराबिम् बिकी-अतिंय् यह्सबुहुज-ज़म्आनु मा-अन्-हत्ता , इजा़ जा-अहू लम् यजिद्हू शैअंव्-व व-जदल्ला-ह अिन्दहू फ़-वफ़्फा़हु हिसा-बहू , वल्लाहु सरीअुल-हिसाब (39)
और जिन लोगों ने कुफ्र एख्तेयार किया उनकी कारस्तानियाँ (ऐसी है) जैसे एक चटियल मैदान का चमकता हुआ बालू कि प्यासा उस को दूर से देखे तो पानी ख्याल करता है यहाँ तक कि जब उसके पास आया तो उसको कुछ भी न पाया (और प्यास से तड़प कर मर गया) और ख़ुदा को अपने पास मौजूद पाया तो उसने उसका हिसाब (किताब) पूरा पूरा चुका दिया और ख़ुदा तो बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है (39)

औ क-जुलुमातिन् फ़ी बहरिल लुज्जिय्यिंय्-यग्शाहु मौजुम्-मिन् फौकिही मौजुम्-मिन् फौकिही सहाबुन , जुलुमातुम्-बअजुहा फ़ौ-क बअ्ज़िन् , इज़ा अख़र-ज य-दहू लम् य-कद् यराहा , व मल्लम् यज्अ़लिल्लाहु लहू नूरन् फ़मा लहू मिन्-नूर (40)*
(या काफिरों के आमाल की मिसाल) उस बड़े गहरे दरिया की तारिकियों की सी है- जैसे एक लहर उसके ऊपर दूसरी लहर उसके ऊपर अब्र (तह ब तह) ढॉके हुए हो (ग़रज़) तारिकियाँ है कि एक से ऊपर एक (उमड़ी) चली आती हैं (इसी तरह से) कि अगर कोइ शख्स अपना हाथ निकाले तो (शिद्दत तारीकी से) उसे देख न सके और जिसे खुद ख़ुदा ही ने (हिदायत की) रौशनी न दी हो तो (समझ लो कि) उसके लिए कहीं कोई रौशनी नहीं है (40)

अलम् त-र अन्नल्ला-ह युसब्बिहु लहू मन् फ़िस्समावाति वल्अर्ज़ि वत्तैरु साफ्फातिन् , कुल्लुन् क़द् अ़लि-म सला-तहू व तस्बी-हहू , वल्लाहु अ़लीमुम् बिमा यफ्अ़लून (41)
(ऐ शख्स) क्या तूने इतना भी नहीं देखा कि जितनी मख़लूक़ात सारे आसमान और ज़मीन में हैं और परिन्दें पर फैलाए (ग़रज़ सब) उसी को तस्बीह किया करते हैं सब के सब अपनी नमाज़ और अपनी तस्बीह का तरीक़ा खूब जानते हैं और जो कुछ ये किया करते हैं ख़ुदा उससे खूब वाक़िफ है (41)

व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्जि व इलल्लाहिल्-मसीर (42)
और सारे आसमान व ज़मीन की सल्तनत ख़ास ख़ुदा ही की है और ख़ुदा ही की तरफ (सब को) लौट कर जाना है (42)

अलम् त-र अन्नल्ला-ह युज्जी सहाबन् सुम्-म युअल्लिफु बैनहू सुम्-म यज्-अ़लुहू रूकामन्-फ़-तरल्-वद्-क़ यख़्रूजु मिन् ख़िलालिही व युनज्जिलु मिनस्समा-इ मिन् जिबालिन् फीहा मिम्-ब रदिन् फयुसीबु बिही मंय्यशा-उ व यसरिफुहू अम्-मंय्यशा-उ , यकादु सना बरकिही यज़्हबु बिल्अब्सार (43)
क्या तूने उस पर भी नज़र नहीं की कि यक़ीनन ख़ुदा ही अब्र को चलाता है फिर वही बाहम उसे जोड़ता है-फिर वही उसे तह ब तह रखता है तब तू तो बारिश उसके दरमियान से निकलते हुए देखता है और आसमान में जो (जमे हुए बादलों के) पहाड़ है उनमें से वही उसे बरसाता है- फिर उन्हें जिस (के सर) पर चाहता है पहुँचा देता है- और जिस (के सर) से चाहता है टाल देता है- क़रीब है कि उसकी बिजली की कौन्द आखों की रौशनी उचके लिये जाती है (43)

युक़ल्लिबुल्लाहुल्लै-ल वन्नहा-र , इन्-न फी ज़ालि-क लअिब्- रतल्-लिउलिल्-अब्सार (44)
ख़ुदा ही रात और दिन को फेर बदल करता रहता है- बेशक इसमें ऑंख वालों के लिए बड़ी इबरत है (44)

वल्लाहु ख़-ल-क कुल्-ल दाब्बतिम् मिम्-माइन् फ़-मिन्हुम् मंय्यम्शी अ़ला बत्निही व मिन्हुम् मंय्यम्शी अ़ला रिज्लैनि व मिन्हुम् मंय्यम्शी अ़ला अर्-बअिन् , यख़्लुकुल्लाहु मा यशा-उ , इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर (45)
और ख़ुदा ही ने तमाम ज़मीन पर चलने वाले (जानवरों) को पानी से पैदा किया उनमें से बाज़ तो ऐसे हैं जो अपने पेट के बल चलते हैं और बाज़ उनमें से ऐसे हैं जो दो पाँव पर चलते हैं और बाज़ उनमें से ऐसे हैं जो चार पावों पर चलते हैं- ख़ुदा जो चाहता है पैदा करता है इसमें शक नहीं कि खुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (45)

ल-क़द् अन्ज़ल्ना आयातिम्-मुबय्यिनातिन् , वल्लाहु यह्दी मंय्यशा-उ इला सिरातिम्-मुस्तकीम (46)
हम ही ने यक़ीनन वाजेए व रौशन आयतें नाज़िल की और खुदा ही जिसको चाहता है सीधी राह की हिदायत करता है (46)

व यकूलू-न आमन्ना बिल्लाहि व बिर्रसूलि व अ-तअ्ना सुम्-म य-तवल्ला फ़रीकुम्-मिन्हुम् मिम्-बअ्दि ज़ालि-क , व मा उलाइ-क बिल्-मुअ्मिनीन (47)
और (जो लोग ऐसे भी है जो) कहते हैं कि ख़ुदा पर और रसूल पर ईमान लाए और हमने इताअत क़ुबूल की- फिर उसके बाद उन में से कुछ लोग (ख़ुदा के हुक्म से) मुँह फेर लेते हैं और (सच यूँ है कि) ये लोग ईमानदार थे ही नहीं (47)

व इज़ा दुअू इलल्लाहि व रसूलिही लि-यह्कु-म बैनहुम् इज़ा फ़रीकुम्-मिन्हुम् मुअ्रिजून (48)
और जब वह लोग ख़ुदा और उसके रसूल की तरफ बुलाए जाते हैं ताकि रसूल उनके आपस के झगड़े का फैसला कर दें तो उनमें का एक फरीक रदगिरदानी करता है (48)

व इंय्यकुल्-लहुमुल्-हक़्कु यअ्तू इलैहि मुज्अ़िनीन (49)
और (असल ये है कि) अगर हक़ उनकी तरफ होता तो गर्दन झुकाए (चुपके) रसूल के पास दौड़े हुए आते (49)

अ-फी कुलूबिहिम् म-रजुन अमिरताबू अम् यखा़फू-न अंय्यहीफ़ल्लाहु अ़लैहिम् व रसूलुहू , बल् उलाइ-क हुमुज्ज़ालिमून • (50)*
क्या उन के दिल में (कुफ्र का) मर्ज़ (बाक़ी) है या शक में पड़े हैं या इस बात से डरते हैं कि (मुबादा) ख़ुदा और उसका रसूल उन पर ज़ुल्म कर बैठेगा- (ये सब कुछ नहीं) बल्कि यही लोग ज़ालिम हैं (50)

इन्नमा का-न कौ़लल-मुअ्मिनी-न इज़ा दुअू इलल्लाहि व रसूलिही लि-यह्कु-म बैनहुम् अंय्यकूलू समिअ्ना व अतअ्ना , व उलाइ-क हुमुल्-मुफ्लिहून (51)
ईमानदारों का क़ौल तो बस ये है कि जब उनको ख़ुदा और उसके रसूल के पास बुलाया जाता है ताकि उनके बाहमी झगड़ों का फैसला करो तो कहते हैं कि हमने (हुक्म) सुना और (दिल से) मान लिया और यही लोग (आख़िरत में) कामयाब होने वाले हैं (51)

व मंय्युतिअिल्ला-ह व रसूलहू व यख़्शल्ला-ह व यत्तक्हि फ़-उलाइ-क हुमुल्-फ़ाइजून (52)
और जो शख्स ख़ुदा और उसके रसूल का हुक्म माने और ख़ुदा से डरे और उस (की नाफरमानी) से बचता रहेगा तो ऐसे ही लोग अपनी मुराद को पहुँचेगें (52)

व अक़्समू बिल्लाहि जह्-द ऐमानिहिम् ल-इन् अमर्-तहुम् ल-यख़्रुजुन्-न , कुल्-ल तुक्सिमू ता-अ़तुम् मअ़्रू-फतुन् , इन्नल्ला-ह ख़बीरुम्-बिमा तअ्मलून (53)
और (ऐ रसूल) उन (मुनाफेक़ीन) ने तुम्हारी इताअत की ख़ुदा की सख्त से सख्त क़समें खाई कि अगर तुम उन्हें हुक्म दो तो बिला उज़्र (घर बार छोड़कर) निकल खडे हों- तुम कह दो कि क़समें न खाओ दस्तूर के मुवाफिक़ इताअत (इससे बेहतर) और बेशक तुम जो कुछ करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है (53)

कुल अतीअुल्ला-ह व अतीअुसुर्रसू-ल फ-इन् तवल्लौ फ़-इन्नमा अ़लैहि मा हुम्मि-ल व अ़लैकुम् मा हुम्मिल्तुम् , व इन् तुतीअूहु तह्तदू , व मा-अ़लर्रसूलि इल्लल्-बलागुल्-मुबीन (54)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ख़ुदा की इताअत करो और रसूल की इताअत करो इस पर भी अगर तुम सरताबी करोगे तो बस रसूल पर इतना ही (तबलीग़) वाजिब है जिसके वह ज़िम्मेदार किए गए हैं और जिसके ज़िम्मेदार तुम बनाए गए हो तुम पर वाजिब है और अगर तुम उसकी इताअत करोगे तो हिदायत पाओगे और रसूल पर तो सिर्फ साफ तौर पर (एहकाम का) पहुँचाना फर्ज है (54)

व-अ़दल्लाहुल्लज़ी-न आमनू मिन्कुम् व अमिलुस्सालिहाति ल-यस्तख़्लिफ़न्नहुम् फ़िल्अर्जि क-मस्तख़्ल-फ़ल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् व ल-युमक्किनन्-न लहुम् दीनहुमुल्लज़िर्-तज़ा लहुम् व लयुबद्दिलन्नहुम् मिम्-बअ्दि ख़ौफ़िहिम् अम्नन् , यअ्बुदू-ननी ला युश्रिकू़-न बी शैअन् , व मन् क-फ-र बअ्-द ज़ालि-क फ-उलाइ-क हुमुल्-फ़ासिकून (55)
(ऐ ईमानदारों) तुम में से जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उन से ख़ुदा ने वायदा किया कि उन को (एक न एक) दिन रुए ज़मीन पर ज़रुर (अपना) नाएब मुक़र्रर करेगा जिस तरह उन लोगों को नाएब बनाया जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं और जिस दीन को उसने उनके लिए पसन्द फरमाया है (इस्लाम) उस पर उन्हें ज़रुर ज़रुर पूरी क़ुदरत देगा और उनके ख़ाएफ़ होने के बाद (उनकी हर आस को) अमन से ज़रुर बदल देगा कि वह (इत्मेनान से) मेरी ही इबादत करेंगे और किसी को हमारा शरीक न बनाएँगे और जो शख्स इसके बाद भी नाशुक्री करे तो ऐसे ही लोग बदकार हैं (55)

व अक़ीमुस्सला-त व आतुज़्ज़का-त व अतीअुर्रसू-ल लअ़ल्लकुम् तुर्-हमून (56)
और (ऐ ईमानदारों) नमाज़ पाबन्दी से पढ़ा करो और ज़कात दिया करो और (दिल से) रसूल की इताअत करो ताकि तुम पर रहम किया जाए (56)

ला तह्स-बन्नल्लज़ी-न क-फरू मुअ्जिज़ी-न फिलअर्जि व मअ् वाहुमुन्नारू , व ल-बिअ्सल्-मसीर (57)*
और (ऐ रसूल) तुम ये ख्याल न करो कि कुफ्फार (इधर उधर) ज़मीन मे (फैल कर हमें) आजिज़ कर देगें (ये ख़ुद आजिज़ हो जाएगें) और उनका ठिकाना तो जहन्नुम है और क्या बुरा ठिकाना है (57)

या अय्यु हल्लज़ी-न आमनू लि-यस्तअ्जिनकुमुल्लज़ी-न म-लकत् ऐमानुकुम् वल्लज़ी-न लम् यब्लुगुल-हुलु-म मिन्कुम् सला-स मर्रातिन् मिन् कब्लि सलातिल्-फ़ज्रि व ही-न त-ज़अ़ू-न सिया-बकुम् मिनज़्ज़ही-रति व मिम्-बअ्दि सलातिल्-अिशा-इ , सलासु औ़रातिल्-लकुम् , लै-स अ़लैकुम् व ला अ़लैहिम् जुनाहुम् बअ्-दहुन्-न , तव्वाफू-न अ़लैकुम् बअ्जुकुम् अ़ला बअ्ज़िन् , कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल्-आयाति , वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम (58)
ऐ ईमानदारों तुम्हारी लौन्डी ग़ुलाम और वह लड़के जो अभी तक बुलूग़ की हद तक नहीं पहुँचे हैं उनको भी चाहिए कि (दिन रात में) तीन मरतबा (तुम्हारे पास आने की) तुमसे इजाज़त ले लिया करें तब आएँ (एक) नमाज़ सुबह से पहले और (दूसरे) जब तुम (गर्मी से) दोपहर को (सोने के लिए मामूलन) कपड़े उतार दिया करते हो (तीसरी) नमाजे इशा के बाद (ये) तीन (वक्त) तुम्हारे परदे के हैं इन अवक़ात के अलावा (बे अज़न आने मे) न तुम पर कोई इल्ज़ाम है-न उन पर (क्योंकि) उन अवक़ात के अलावा (ब ज़रुरत या बे ज़रुरत) लोग एक दूसरे के पास चक्कर लगाया करते हैं- यँ ख़ुदा (अपने) एहकाम तुम से साफ साफ बयान करता है और ख़ुदा तो बड़ा वाकिफ़कार हकीम है (58)

व इज़ा ब-लगल्-अत् फालु मिन्कुमुल्-हुलु-म फ़ल्यस्तअ्ज़िनू कमस्तअ्-ज़नल्लज़ी-न मिन् कब्लिहिम् , कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुम् आयातिही , वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम (59)
और (ऐ ईमानदारों) जब तुम्हारे लड़के हदे बुलूग को पहुँचें तो जिस तरह उन के कब्ल (बड़ी उम्र) वाले (घर में आने की) इजाज़त ले लिया करते थे उसी तरह ये लोग भी इजाज़त ले लिया करें-यूँ ख़ुदा अपने एहकाम साफ साफ बयान करता है और ख़ुदा तो बड़ा वाकिफकार हकीम है (59)

वल्क़वाअिदु मिनन्निसाइल्लाती ला यरजू-न निकाहन् फलै-स अ़लैहिन्-न जुनाहुन् अंय्य-ज़अ्-न सिया-बहुन्-न गै-र मु-तबर्रिजातिम्-बिज़ी-नतिन् , व अंय्यस्तअ्फ़िफ्-न खै़रुल लहुन्-न , वल्लाहु समीअुन् अलीम (60)
और बूढ़ी बूढ़ी औरतें जो (बुढ़ापे की वजह से) निकाह की ख्वाहिश नही रखती।

वह अगर अपने कपड़े (दुपट्टे वगैराह) उतारकर (सर नंगा) कर डालें तो उसमें उन पर कुछ गुनाह नही है- बशर्ते कि उनको अपना बनाव सिंगार दिखाना मंज़ूर न हो और (इस से भी) बचें।

तो उनके लिए और बेहतर है और ख़ुदा तो (सबकी सब कुछ) सुनता और जानता है (60)

लै-स अ़लल्-अअ्मा ह-रजुंव्-व ला अ़लल्-अअ्रजि ह-रजुंव्-व ला अ़लल्-मरीज़ि ह-रजुंव्-व ला अ़ला अन्फुसिकुम् अन् तअ्कुलू मिम्-बुयूतिकुम् औ बुयूति आबाइकुम् औ बुयूति उम्महातिकुम् औ बुयूति इख़्वानिकुम् औ बुयूति अ-ख़वातिकुम् औ बुयूति अअ्मामिकुम् औ बुयूति अ़म्मातिकुम् औ बुयूति अख़्वालिकुम् औ बुयूति ख़ालातिकुम औ मा मलक्तुम् मफ़ाति-हहू औ सदीक़िकुम् , लै-स अ़लैकुम् जुनाहुन् अन् तअ्कुलू जमीअ़न् औ अश्तातन् , फ़-इज़ा दख़ल्तुम् बुयूतन् फ़-सल्लिमू अला अन्फुसिकुम् तहिय्य-तम् मिन् अिन्दिल्लाहि मुबार-कतन् तय्यि-बतन् , कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल्आयाति लअ़ल्लकुम तअ्किलून (61)*
इस बात में न तो अंधे आदमी के लिए मज़ाएक़ा है और न लँगड़ें आदमी पर कुछ इल्ज़ाम है।

और न बीमार पर कोई गुनाह है और न ख़ुद तुम लोगो पर कि अपने घरों से खाना खाओ या अपने बाप दादा नाना बग़ैरह के घरों से या अपनी माँ दादी नानी वगैरह के घरों से या अपने भाइयों के घरों से या अपनी बहनों के घरों से या अपने चचाओं के घरों से या अपनी फूफ़ियों के घरों से या अपने मामूओं के घरों से या अपनी खालाओं के घरों से।

या उस घर से जिसकी कुन्जियाँ तुम्हारे हाथ में है या अपने दोस्तों (के घरों) से इस में भी तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं कि सब के सब मिलकर खाओ या अलग अलग फिर जब तुम घर वालों में जाने लगो।

(और वहाँ किसी का न पाओ) तो ख़ुद अपने ही ऊपर सलाम कर लिया करो जो ख़ुदा की तरफ से एक मुबारक पाक व पाकीज़ा तोहफा है- ख़ुदा यूँ (अपने) एहकाम तुमसे साफ साफ बयान करता है ताकि तुम समझो (61)

इन्नमल्-मुअ्मिनूनल्लज़ी-न आमनू बिल्लाहि व रसूलिही व इज़ा कानू म-अ़हू अ़ला अम्रिन् जामिअ़िल् लम् यज़्हबू हत्ता यस्तअ्ज़िनूहु , इन्नल्लज़ी-न यस्तअ्ज़िनू-न-क उलाइ-कल्लज़ी-न युअ्मिनू-न बिल्लाहि व रसूलिही फ़-इज़स्तअ्-ज़नू-क लिबअ्ज़ि शअ्निहिम् फ़अज़ल-लिमन् शिअ्-त मिन्हुम् वस्तग्फिर लहुमुल्ला-ह इन्नल्ला-ह ग़फूरुर्-रहीम (62)
सच्चे ईमानदार तो सिर्फ वह लोग हैं जो ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाए और जब किसी ऐसे काम के लिए जिसमें लोंगों के जमा होने की ज़रुरत है- रसूल के पास होते हैं जब तक उससे इजाज़त न ले ली न गए (ऐ रसूल) जो लोग तुम से (हर बात में) इजाज़त ले लेते हैं वे ही लोग (दिल से) ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाए हैं तो जब ये लोग अपने किसी काम के लिए तुम से इजाज़त माँगें तो तुम उनमें से जिसको (मुनासिब ख्याल करके) चाहो इजाज़त दे दिया करो और खुदा उसे उसकी बख़्शिस की दुआ भी करो बेशक खुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (62)

ला तज्अलू दुआ़अर्रसूलि बैनकुम् क-दुआ़-इ बअ्ज़िकुम् बअ्जन् , कद् यअ्लमुल्लाहुल्लज़ी-न य-तसल्ललू-न मिन्कुम् लिवाज़न् फ़ल्यह्ज़रिल्लज़ी-न युखालिफू-न अन् अम्रिही अन् तुसी-बहुम् फित्-नतुन् औ युसी-बहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम (63)
(ऐ ईमानदारों) जिस तरह तुम में से एक दूसरे को (नाम ले कर) बुलाया करते हैं उस तरह आपस में रसूल का बुलाना न समझो ख़ुदा उन लोगों को खूब जानता है

जो तुम में से ऑंख बचा के (पैग़म्बर के पास से) खिसक जाते हैं- तो जो लोग उसके हुक्म की मुख़ालफत करते हैं उनको इस बात से डरते रहना चाहिए कि (मुबादा) उन पर कोई मुसीबत आ पडे या उन पर कोई दर्दनाक अज़ाब नाज़िल हो (63)

अला इन्-न लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति वल्अर्जि , कद् यअ्लमु मा अन्तुम् अ़लैहि , व यौ-म युर्जअू-न इलैहि फ़युनब्बिउहुम् बिमा अ़मिलू , वल्लाहु बिकुल्लि शैइन् अलीम (64)*

ख़बरदार जो कुछ सारे आसमान व ज़मीन में है (सब) यक़ीनन ख़ुदा ही का है जिस हालत पर तुम हो ख़ुदा ख़ूब जानता है

और जिस दिन उसके पास ये लोग लौटा कर लाएँ जाएँगें तो जो कुछ उन लोगों ने किया कराया है बता देगा और ख़ुदा तो हर चीज़ से खूब वाकिफ है (64)

सूरह नूर पीडीऍफ़ | Surah Noor Hindi Pdf

जैसा की आपने सूरह नूर को ऊपर टेक्स्ट के जरिये पढ़ ही लिया होगा और साथ ही साथ आपने सूरह नूर का हिंदी तर्जुमा भी पढ़ा होगा।

लेकिन हम चाहते हैं की हम इस सूरह को जब चाहे तब पढ़ सकें, उसके लिए हमने नीचे इस सूरह नूर की पीडीऍफ़ डाउनलोड करने का button दिया है।

आप आसानी के साथ यहाँ से Surah Noor in Hindi Pdf Download कर सकते हैं।

सूरह नूर अरबी में | Surah Noor In Arabic Image

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सूरह नूर की ऑडियो | Surah An-Nur Mp3

दोस्तों, हमें उम्मीद है की आपने सूरह नूर को हिंदी और अरबी में पढ़ लिया होगा।

यहाँ हमने सूरह नूर की ऑडियो फाइल मौजूद करायी है।

अगर आपको कुरान की तिलावत अरबी में उर्दू तर्जुमा के साथ सुनना पसंद है,

जिसे सुनकर आपको सुकून हासिल होता है, तो हमें नीचे इस Surah Noor Mp3 डाउनलोड करने का button दिया है।

आप आसानी के साथ इसे डाउनलोड कर सकते हैं।

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